Book Title: Barsanupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vishalyasagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 81
________________ बारसाणु पेपरवा बुद्धिपूर्वक विकल्प से युक्त होने के कारण सविकल्प होते हैं और इसके आगे सातवें आदि गुणस्थानों में निर्विकल्प होते हैं । अत: यह बात स्वत: सिद्ध हो जाती है कि सविकल्प अवस्था छठे गुणस्थान तक पाया जाने वाला धर्म ध्यान सविकल्प धर्मध्यान है। और इसके आगे सातवें गुणस्थान में पाया जाने वाला धर्म ध्यान निर्विकल्प धर्म ध्यान है। इसे ही निर्विकल्प समाधि व शुद्धोपयोग आदि कहा है। अत: शुद्धोपयोग से सप्तम गुणस्थान में निर्विकल्प धर्मध्यान होता है और इससे ही आगे आठवें आदि गुणस्थानों में शुक्ल ध्यान होता है। तथा इसके आगे ग्यारहवें आदि गुणस्थान में शुद्धोपयोग से ही शुक्ल ध्यान होता है। ___ किन्हीं - किन्हीं आवाओं ने शुद्धोपयोग को शुक्ल ध्यान को अविनाभावी माना है। उनके अनुसार वहां यथाक्रम से शुद्धोपयोग से शुक्ल ध्यान जानना चाहिए ।।६४।। • सुद-परिचिदाणुभूया सब्वस्स वि कामभोगबंधकहा ! एयत्तस्सुवलंमो णवरि ण सुलहो विहत्तस्स ।। (स. पा. ४) • सुत्तं हि जाणमाणो भवस्स भवणासणं च सो कुणदि । सूई जहा असुत्ता णासदि सुत्ते सहा णो वि || (सूत्र पा. ३) •खपुष्पमथवा श्रृङ्ग खरस्यापि प्रतीयते । न पुनर्देश कालेऽपि ध्यान सिद्धिगुहाश्रमे।। (ज्ञानार्णव ४/१७)

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