Book Title: Barsanupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vishalyasagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 71
________________ बारसाणु पेपरया शुभ वचन और शुभ काय का कथन संसार छेद कारण वयणं, सुहवयणमिदि जिणुद्दिठें। जिणदेवादिसुपूजा सुहकार्य लिय हवे चेट्ठा ॥५५॥ अन्वयार्थ: संसार छेद कारणं वयणं सुहवयणं इदि जिणदेवादिसु पूजा य घेट्ठा हवे सुहकायं ति जिणुदिटुं - संसार विच्छेद के कारण - वचन शुभवचन है। .. - जिनेन्द्र देव आदि की सच्ची पूजा रूप - जो चेष्टा है। - शुभ काय है ऐसा - जिनेन्द्र भगवान ने कहा है ।।५५॥ भावार्थ- संसार परिभ्रमण को विच्छेद करने में कारण भूत वचन शुभवचन है तथा जिनेन्द्र देव आदि की सच्ची पूजा रूप जो चेष्टा है वह शुभ काय है। ऐसा जिनेन्द्र भगवान ने कहा है। • पूर्वाहणे हरते पापं मध्याह्ने कुरुते श्रियम् । ददाति मोक्षं सन्ध्यायां जिनपूजा निरन्तरम् ।। ||उमास्वामि श्रा. १८१|| अर्थ- निरन्तर प्रभात में की गई जिनपूजा पाप को दूर करती है, मध्याह्न में की गई जिनपूजा लक्ष्मी (अंतरंग लक्षमी) को करती है और संध्या काल में की गई जिनपूजा मोक्ष को देती है।

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