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वारसाणु पैक्रवा
अशुभ्र वचन और अशुभ काय
भित्तित्थिराय चोर कहा ओ वयणं वियाण असुहमिदि । बंधण छेदण मारण किरिया सा असुह-कायेत्ति ॥५३॥
अन्वयार्थ:
भित्तित्थिरायचोर कहाओ
इदि
असुह वयणं
अंधण छेदण मारण
किरिया
सा असुह कात्ति
वियाण
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भक्त कथा, स्त्री कथा, राज कथा,
रूप वचन
इस प्रकार से
अशुभ वचन है तथा तथा बांधना, मारना, छेदना
इत्यादि क्रिया
वह अशुभ काय है
ऐसा जानो ॥५३॥
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• वालता प्रकृतिर्यस्य तस्य कुण्ठा मतिर्भवेत् । पित्तला प्रकृतिर्यस्य तस्य तीव्रामतिर्भवेत् ॥ ॥ व्रतोद्योतन श्रावका || २०६||
चोर कथा
भावार्थ - भोजन कथा, स्त्री कथा, राजकथा, चोर कथा इन चार विकथ रूप वचन अशुभ वचन है। तथा बांधना, मारना, छेदना, इत्यादि क्रिया करना अशुभ काय है। ऐसा जानना चाहिए।
अर्थ - जिस पुरुष की वायु प्रधान प्रकृति होती है, उसकी बुद्धि कुण्ठित होती है तथा जिस पुरुष की प्रकृति पित्त प्रधान होती है, उसकी बुद्धि तीव्र होती है।