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बारसाणु पक्रया
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ज्ञानपूर्वक क्रिया मोक्ष का कारण
कम्मासवेण जीवो बूढदि संसारसायरे घोरे । जंणाणवसं किरिया मोक्खणिमित्तं परंपरया।।५७।।
अन्वयार्थ:
जीवो कम्मासवेण . घोरे संसारसायरे बूडदि जंणाणवसं किरिया परंपरया मोक्खणिमित्त
- जय जीव - कर्मों के आम्रव से - घोर संसार सागर में - डूबता है - जो सम्यग्दर्शन ज्ञान पूर्वक क्रिया है - वह परंपरा से - मोक्ष का निमित्त कारण है ॥५७||
भावार्थ- यह जीव कर्मों के आम्रव से घोर संसार सागर में डूबता है। किंतु जो सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान पूर्वक होने वाली जो सम्यक् शुभ क्रिया (आचरण) है वही परपंरा से मोक्ष का निमित्त कारण है।
• ये वदन्ति स्वयं स्वस्य गुणान् दोषान् पुनर्नच । गर्दभादि कुयोनि ते श्वभ्रं वा यान्ति दुर्द्धियः ।।
||प्रश्नोत्तर श्रावका.॥ अर्थ- जो मूर्ख अपने गुणों को अपने आप कहते फिरते है और अपने दोषों को कभी प्रगट नहीं करते वे गधे आदि कुयोनियों में जन्म लेते है
अथवा नरक में जाकर दुःख भोगते हैं।