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सारसाणु पेपरवा
९. संवर अनुप्रेक्षा
मिथ्यात्व का निरोधक सम्यक्त्य
चलमलिन मगाद च वज्जिय सम्मत्त दिढकवाडेण । मिच्छत्तासव दार गिरोहो होदित्ति जिणेहिं णिदिटुं ॥६॥
अन्वयार्थ:
जाल मालिनं च अगाढ वज्जिय सम्मत्त दिढ कवाडेण
- चल मलिन और आगाढ़ दोषों से - रहित - सम्यक्त्व रूपी दृढ़ कपाटों (कपाटो/
दरवाजों) से - मिथ्यात्व के आम्रव द्वार का - निरोध संवर होता है - ऐसा जिनेन्द्र भगवान ने कहा है ।।६१||
मिच्छत्तासवदार णिरोहो होदि ति जिणेहि णिद्दिट्ट
भावार्थ- जिस प्रकार कोट में बाह्य मजबूत द्वारों को बंद कर देने से शत्रु सेना का प्रवेश नहीं हो पाता है ठीक इसी तरह चल मलिन अगाढ़ दोषों से रहित क्षायिक (सुदृढ़) सम्यक्त्व रूपी द्वारों को बंद कर देने से मिथ्यात्व का प्रवेश रुक जाता है। ऐसा जिनेन्द्र भगवान कहते हैं।
• सम्मत्तणाणजुत्तं चारित्तं रागदोसपरिहीणं। मोक्खस्स हदि मग्गो भव्वाणं लद्धबुद्धीणं ।।७१॥
(पंचास्किाय ११३) अर्थ- सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सहित व राग द्वेष रहित चारित्र रूप मोक्ष का मार्ग लब्धबुद्धि आत्मा ज्ञानी भेदविज्ञान की कला प्राप्त भव्य जीवों को प्राप्त होता है।