Book Title: Barsanupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vishalyasagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 76
________________ वारसाणु पैलवा अन्वयार्थः निश्चय से आत्मा के कर्मास्रव नहीं पुवृत्तास भेंदा णिच्छयणयएण णत्थि जीवस्स । उहयासवणिम्मुक्कं अप्पाणं चिंतए णिच्चं ॥ ६० ॥ पुवुत्त आसव भेदा णिच्छय णयएण जीवस्स णत्थि अप्पाणं णिच्चं उयासव जिम्मुक्कं चिंतए L - 17 AR - - पूर्वोक्त आम्रवों के भेद निश्चय नय से ७५ जीव के नहीं है इसलिए, आत्मा को हमेशा ( द्रव्य भाव रूप) दोनों प्रकार के आसन से रहित चिंतन करो । भावार्थ- पहले कहे हुये आम्रव के भेद निश्चय नय से जीव के नहीं है। इसलिए आत्मा हमेशा द्रव्याम्रव और भावाभ्रव से रहित चिंतन करना चाहिए। • मुक्तिरेकान्तिकी तस्य चित्ते यस्याचला धृतिः । तस्य नैकान्तिकी मुक्तिर्यस्य नास्त्यचला धृतिः || ७१ ॥। अर्थ- जिस पुरुष में चित्त में आत्मस्वरूप की निश्चल धारण है उसकी नियम से मुक्ति होती है। जिस पुरुष की आत्म स्वरूप में निश्चल धारणा नही है उसकी अवश्यक भाविनी मुक्ति नही होती है। ( समाधितंत्र)

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