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आस्रव द्वार के निरोधक हेतु
पंच महव्वय मणसा अविरमणं णिरोहणं हवे णियमा। कोहादि आसवाणं दाराणि कसायरहिय पल्लगेहिं ।।२।।
अन्वयार्थ:पंच महव्वय मणसा
• पंच महाव्रत युक्त मन से अर्थात् भाव
सहित धारण किये गये पांच महाव्रतों से णियमा अविरमर्ण
- नियम से अविरतों का णिरोहो हवे
- निरोध हो जाता है और कोहादि आसवाणं (णिरोहणं) - क्रोधादि कषाय से होने वाला आम्रव का
निरोध कषाय रहिय दाराणि पल्लगेहिं - कषाय रहित अर्थात् अकषाय रूप द्वारों
के बंद हो जाने से होता है ।।६२।।
भावार्थ- अहिंसा महाव्रत, सत्य महाव्रत, अचौर्य महाव्रत. ब्रह्मचर्य महाव्रत तथा अपरिग्रह महाव्रत इन पांच महाव्रतों को धारण करने से हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील तथा परिग्रह रूप अविरतों (पापों) का निरोध हो जाता है अर्थात् अविरति से होने वाला आम्रव रुक जाता है तथा क्रोध, मान, माया लोभ कषाय से होने वाला आसव अकषाय भाव अर्थात क्षमा, मार्दव, आर्जव और शौच स्वभाव रूप सुदृढ़ द्वारों के बंद हो जाने से रुक जाता है।
• सम्मत्तं सद्दहणं भावाणं तेसिमधिगमो णाणं । चारित्तं समभावो विसयेसु विरुढग्गाणं।।
(पंचास्किाय ११५)