________________
सापेरा
६९
व्रत समिति रूप शुभ परिणाम शुभ मन है
अत्तण असुहभावं पुष्वुत्तं शिरवसेसदो दव्यं । वद-समिदि सील संजम परिणामं सुहमणं जाणे ॥५४॥
अन्वयार्थ:
पुवुत्तं दध्वं असुह भावं णिरवसेसदो मोत्तूण बद समिदि सील संजम परिणाम सुह मणं जाणे
- पूर्वोक्तद्रव्य और - अशुभ भावों को - पूर्णत: छोड़कर - व्रत समिति शील और
- संयम रूप परिणामों का होना .. - शुभ मन है ऐसा जानो ॥५४||
भावार्थ- पूर्वोक्त आम्रव बंध में कारण भूत द्रव्य एवं भावों को पूर्णतः छोड़कर व्रत, समिति, शील और संयम रूप परिणाम को शुभ मन जानना चाहिए ।
• रयण-त्तय-जुत्ताणं अणुक्लं जो चरेदि भत्तीए। भिच्चो जह रायांण उवयारो सो हवे विणओ।।
का, अ. ४५८।। अर्थ- जैसे सेवक राजा के अनुकूल प्रवृत्ति करता है वैसे ही रत्नत्रय अर्थात्
सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र धारक मुनियों के
अनुकूल भक्तिपूर्वक प्रवृत्ति करना उपचार विनय है।