Book Title: Barsanupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vishalyasagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 66
________________ वारसाणु वेक्वा कषाय और योग के भेद कोहे माणो किरा पण वचकायेण पुणो जोगो तिवियप्पमिदि जाणे ॥४९॥ यह गाथा मूलाचार में इस प्रकार है कोहो माणो लोभो य दुरासय कसायरिक दोस सहस्सावासा दुक्ख सहस्साणि पावंति || ७३७।। अन्वयार्थः कोहो माणो माया य लोहा चउवि कसायं पुणो मण वच कायेण जोगो विवियपं इदि जाणे - - - - क्रोध, मान, माया और लोभ ये नियम से चार प्रकार की कषाय हैं। और मन, वचन, काय के भेद से योग तीन प्रकार का है ऐसा जानो ।।४९ ॥ ६५ भावार्थ- क्रोध, मान, माया और लोभ ये चार प्रकारकी कषायें हैं और मन, वचन तथा काय के भेद से तीन प्रकार का योग है। ऐसा जानना चाहिए। • जीवन में संत दर्शन तो बहुत होते है, लेकिन दर्शन के उपरान्त जो हृदय में समर्पण का भाव पैदा होता है, भक्ति का भाव जगता है, तीव्र लालसा उत्पन्न होती है, वही वास्तव में दर्शन है, शेष तो मात्र कोरा प्रदर्शन है। ॥आ. श्री विराग सागर जी ।।

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