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(વારસાબુ જેવા
८. आस्रव अनुप्रेक्षा
कमान के कारण मिच्छत्तं अविरमणं कसायजोगा य आसवा होति ।
पण पण चउ तिय भेदासम्म परिकित्तिदा समये।।४७|| यह गाथा मूलाचार में इस प्रकार हैमिच्छत्ता विरदीहिं य कसाय जोगेहिं जं च आसवदि । दंसण विरमणणिग्गहणिरोधणेहिं तु णासवदि ।।७४४॥ अन्वयार्थ:पण मिच्छत्तं
- पांच मिथ्यात्व पण अविरमणं
- पांच अविरति चड़ कसाय य
- चार कषाय और तिय भेदा जोगा - तीस प्रकारके योगों से आसवा होर्ति
- आम्रव होता है ऐसा समये
- आगम ! शास्त्रों में सम्म परिकित्तिदा - अच्छी तरह से कहा गया है ।।४७||
भावार्थ- पांच प्रकार के मिथ्यात्व, पांच प्रकार के अविरत, चार प्रकार की कपायें तथा तीन प्रकार के योग ये सत्रह कर्मों के आम्रव के हेतु हैं। ऐसा जिनागम (शास्त्रों) में अच्छी तरह से कहा गया है।
• आसन्नभव्यता कर्महानिसंजित्वशुद्ध परिणामा:। सम्यक्वहेतुरन्तर्बाह्य उपदेशकादिश्च ।।
|उमास्वामि-श्रावका ।।.२३|| - -