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(વારસાબુ પરવા
देहातीत आत्मा की शुद्धता का चिंतन
देहादो वदिरित्तो कम्मविरहिओ अणंतसहणिलयो। चोक्खो हवेइ अप्पा इदिणिच्चं भाषणं कुज्जा।।४६॥
अन्वयार्थ:
कम्म रहिओ देहादो वदिरित्तो अणंत सुरुणिलयो चोक्खो अप्पा हवेइ इदि णिच्चं भावणं कुज्जा
- कर्म से रहित और - शरीरादि से रहित - अनंत सुख का निलय स्वरूप - सच्ची आत्मा होती है - ऐसी हमेशा - भावना करो।॥४६॥
भावार्थ- ज्ञानावरणादि आठ द्रव्य कर्म रागद्वेष आदि भाव कर्म तथा शरीर आदि नोकर्म से रहित, अनंत सुख का घर हमारी सच्ची आत्माहोती है। ऐसा हमेशा चिंतन करना चाहिए।
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• जो पर-देह विरत्तो णिम-देहे ण य करेदि अणुरायं । अप्प-सरूव सुरत्तो असुइत्ते भावणा तस्स ।।
का. अनु. ८७|| अर्थ- जो दूसरों के शरीर से विरक्त है और अपने शरीर से अनुराग नहीं करता है, तथा आत्मा के शुद्ध चिद्रूप में लीन रहता है उसी की अशुचित्व में भावना हैं।