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चारसापूरसा
स्वर्ग के ६३ पटल
इगतीस सत्तचत्तारि दोणि एक्केक्क छक्क चदुकप्पे । तित्तिय एक्केकेदय णामा उडु आदि सट्टी ॥४२॥
अन्वयार्थ:
इगतीस-सत्त चत्तारि ___ - इकतीस, सात, चार दोणि एक्क चदुकप्पे छक्क - दो, एक, एक, चार कल्पों में छ: तित्तिय एक्क एक्क उडुणामादि । - तीन-तीन के तीन तथा इसके आगे एक,
एक पटल है इस प्रकार ऋजु आदि
नामवाले तेसट्टी इंदय
- त्रेसठ इंद्रक/पटल/विमान है।
भावार्थ- ऊर्ध्व लोक में वेसळ पटल निम्न प्रकार है सौधर्म ऐशान स्वर्ग में इक्तीस पटल हैं। सानत कुमार माहेन्द्र स्वर्ग में सात पटल ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर युगल में चार पटल हैं। लान्तव कापिष्ठ में दो पटल हैं शुक्र महाशुक्र युगल में एक पटल है। शतार-सहस्रार युगल में एक पटल है। आनत प्राणत, आरण अच्युत, इन दो युगलों में छ: पटल हैं अधो, मध्य
और ऊर्ध्व, अवेयक में तीन तीन के तीन कुल नौ पटल है नव अनुदिश विमानों में एक पटल है। पांच अनुत्तरों में एक पटल है। इस प्रकार ऋजु आदि नाम वाले वेसठ इन्द्रक आदि पटल (विमान) हैं।
• लवलोए कालोए अंतिम- जलहिम्मि जलयरो संति। सेस-समुद्देसु पुणो ण जलयरा संति णियमेण।।
का. अनु. १४४।। अर्थ- लवणोद समुद्र में, कालोद समुद्र में और अंत के स्वयंभू रमण समुद्र में जलचर जीव है। किंतु शेष बीच के समद्रों में नियम से जलचर जीव नहीं हैं।