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वारसाणु परया
६. लोक अनुप्रेक्षा लोक और उसके भेद
जीवादि-पदव्याणं समवाओ सो णिरुच्चए लोगो। तिविहो हवेइ लोगो अधमज्झिम-उट्ट भेएण ॥३९॥
अन्वयार्थ:
जीवादि पदव्याणं समवाओ - जो जीवादि पदार्थों का समवाय समूह है सो लोगो निरुच्चए - वह लोक शब्द से निरुक्त है अर्थात् उसे
___"लोक" कहते हैं। और वह लोक अधमज्झिम उट्ट भेएण - अधो मध्य और ऊर्ध्व के भेद से तिविहो हवेइ
- तीन प्रकार का होता है ।।३९॥
भावार्थ- जो जीवादि पदार्थों का समवाय/ समूह हैं। वह लोक शब्द से निरुक्त हैं अर्थात उसे लोक' कहते हैं। और वह लोक अधो, मध्य और ऊर्ध्व के भेद से तीन प्रकार का होता है।
• जइ पुण सुद्ध-सद्धावा सब्वे जीवा अणाइ-काले वि। तो तव-चरण-विहाणं सव्वेसि पिप्फलं होदि।।
का. अनु. २००॥ अर्ध- यदि सब जीव सदा शुद्ध स्वभाव हैं तो सबका
तपश्चरण करना निष्फल होता है।