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बारसाणु वेवस्था
अन्वयार्थ:
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तीनों लोकों की संरचना
रिया हवंति हेला मज्झे दीवंबुरासयोऽसंखा । सग्गो तिसटि भेओ एत्तो उड हवे मोक्खो ॥४०॥
हेट्टो णिरया हति
मज्झे असंख दीव अंबुरासयो उड़ढे सग्गो तिसदिठभेओ
मोक्खो हवे
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( लोक के) अधोलोक में नरक होते हैं। मध्यलोक में असंख्यात द्वीप समुद्र हैं
ऊर्ध्व लोक में स्वर्ग सहित त्रेसठ पटलों के भेद हैं
इसके आगे मोक्ष होता है अर्थात् सिद्धलोक
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भावार्थ - अधोलोक में सात नरक होते हैं। मध्यलोक में असंख्यात् समुद्र होते हैं। ऊर्ध्व लोक में स्वर्ग सहित त्रेसठ पटलों के भेद हैं। इसके आगे मोक्ष अर्थात् सिद्धलोक है।
• क्रूरता दण्डपारुण्यं वञ्चकत्वं कठोरता । निरित्रंशत्वं च लिङ्गानि रौद्रस्योक्तानि सूरिभिः ||३७| • अर्थ क्रूरता (द्रष्टता), दंडकी, वञ्चकता, कठोरता निर्दयता ये रौद्रध्यान के चिन्ह आचायौ ने कहे हैं।।
• विस्फुलिनिभे नेत्रे भूवका भीषणाकृतिः । कम्पः स्वेदादिलिङ्गानि रौद्रे बाह्यानि देहिनाम् ||३८||
अर्थ- अग्रिके फुलिंग समान लाल नेत्र ही, भौंहो टेढ़ी हो, भयानक आकृति हो,
देह में कंपन हो और पसीना हो इत्यादि रौद्रध्यान के बाह्य चिन्ह हैं।
(ज्ञानार्णवा )
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