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[लारसाणुवस्था
निश्चयनय से जीव का संसार भ्रमण नहीं
कम्मणिमित्तं जीवो हिंडदि संसार घोर कंतारे । जीवस्स ण संसारो णिच्चयणय कम्म विम्मुक्को॥३७।।
अन्वयार्थ:
जीवो कम्म णिमिस घोर संसार कांतारे हिंडदि णिच्चयणय कम्म विम्मुक्को जीवस्स ण संसारो
- संसारी जीव - कर्मों के निमित्त से • घनघोर संसार वन में - घूमता है किंतु - निश्चय नय से - कर्म से रहित - जीव के संसार नहीं होता है। वह तो संसार से
रहित हैं/मुक्त हैं ऐसा जानना चाहिए ।।३७||
भावार्थ- संसारी जीव कर्मों के निमित्त से घनघोर संसार में घूमता है किंतु शुद्ध निश्चय नय से कर्म से रहित जीव के संसार नहीं होता। वह तो संसार से रहित मुक्त ही है। ऐसा जानना चाहिए।
• नि:सारे खलु संसारे सुखलेशोपि दुर्लभः । दुःख मेव महत्-तस्मिन् सुखं काम्यति मन्दयी:।।
|आ. पु. पर्व १७/१७|| अर्थ- इस असार संसार में सुख का लेश मात्र भी दुर्लभ है और दुःख बड़ा भारी है
फिर भी आश्चर्य है कि मंदबुद्धि पुरुष उसमें सुख की इच्छा करते हैं।