Book Title: Barsanupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vishalyasagar
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 52
________________ वारसाणु वेक्रवा अन्वयार्थ: - चौरासी लाख योनियों के भेद णिच्चिदर धातुसत्तय तरुदस वियलिंदियेसु छच्चेव । सुर णिरय तिरय चउरो चोदस मणुये सदसहस्सा ||३५|| णिच्चिदर श्रादु सत्त सद सहस्सा तदस सदसहस्सा वियलिंदियेसु छच्चेव सद सहस्सा सुर णिरण, तिरय घउरो सदसहस्सा मणुये चोदस सदसहस्सा - - · Ad - ५१ नित्य निगोद और इतर निगोद पृथवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक वायुकायिक, प्रत्येक की (७-७) सात-सात लाख प्रत्येक वनस्पति कायिक की दस लाख विकलेद्रिय अर्थात् दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय चार इन्द्रियों की प्रत्येक की दो-दो लाख इस तरह इन की छह लाख जातियां हुईं तथा देव, नारकी और तिर्यंचो की प्रत्येक की चार-चार ( ४-४ ) लाख एवं मनुष्यों की चौदह (१४) लाख जातियां इस प्रकार संसारी जीवों की (कुल मिलाकर) चौरासी लाख जातियां होती हैं ।। ३५ ।। भावार्थ- नित्यनिगोद, इतरनिगोद, पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायु कायिक, इन सभी के सात-सात लाख तथा प्रत्येक वनस्पति कायिक के दस लाख दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय प्रत्येक के दो-दो लाखा देव नारकी, तिर्यंचों के चारचार लाख एवं मनुष्यों की चौदह लाख जातियां है। कुल मिलाकर चौरासी लाख येनियां होती हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108