Book Title: Barsanupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vishalyasagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 51
________________ वारसाणु पक्रया इन्द्रिय विषयों के कारण संसार में पतन जत्तेण कुणइ पावं विसयणिमित्तं च अणिसं जीवो। मोहंथयार सहिओ तेण दु परिपडदि संसारे ॥३४॥ अन्वयार्थ: जीवो मोहं धयार सहिओ विसयणिमिस अहणिसं जत्तेण पावं कुणइ तेणदु संसारे परिपर्बाद - यह जीव - मोहरूपी अंधकार से युक्त - पंचेन्द्रिय विषयों के निमित्त - अहर्निश दिन रात - बड़े प्रत्यन पूर्वक - पाप करता है - इसी से - संसार में पतित होता है गिरता है परिभ्रमण करता है ।।३४|| भावार्थ- यह जीव मोहरूपी अंधकार से युक्त होकर पांचों इंद्रियों के विषयों के लिए दिन रात बड़े प्रयत्न से पापों को करता है वह बुरी तरह से संसार में गिरता है/ डूबता है/ परिभ्रमण करता है। • चरिया पमादबहुला कालुस्सं लोलदा य विसएसु। परपरिदावपवादो पावस्स य आसवं कुणदि।। पंचास्किाय १४७|| अर्थ- बहुल प्रमादचर्या, चित्त की कलुषता, विषयों के प्रति लोलुपता, पर को परिताप देने का भाव और अपवाद वचन बोलना ये पाप का आस्रव कराते हैं।

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