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बारसाणु वेक्खा
अन्वयार्थ:
मकारत्रय का सेवन संसार भ्रमण का कारण
'हंसूण जीवरासिं महुमंसं सेविऊण सुरपाणं । परदव्य परकलत्तं गहिऊण य भमदि संसारे ||३३||
जीवरासिं हंसूण
महुमंसं सेविऊण सुरपाणं
पद दव् य
परकलत्तं
गहिऊण
संसारे भमदि
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जो जीव अनेक प्रकार की जीव राशि की हिंसा करके जो
मधु मांस सेवन करके और शराब की पीता है
तथा
दुसरों के पदार्थ (वस्तुओं) को तथा दूसरों की स्त्री को
ग्रहण करता है ( वह)
संसार में घूमता है ||३३||
भावार्थ- जो जीव अनेक प्रकार की जीव राशि की हिंसा करके प्राप्त मद्य (शराब), मांस/ अण्डे, मधु (शहद) का सेवन करके दूसरों के धन, धान्य आदि पदार्थों को ग्रहण करता है। छीनता है वह दीर्घ काल तक संसार में घूमता है।
• रोरवादिषु घोरेषु विशन्ति पिशिताशनाः । तेष्वेव हि कदर्थ्यन्ते जन्तुघाट कृतोद्यमाः ।। || ज्ञानार्णव ८ / १७||
अर्थ- जो मांस के खालेवाले हैं वे सातवें नरक के रौरवादि बिलों में प्रवेश करते हैं। और वहीं पर जीवों को घात करने वाले शिकारी आदिक भी पीडित होते हैं।