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દાદાબૂ પcરવા
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धर्म बुद्धि छोड़ने वाला दीर्घ संसारी
मम पुत्तं मम भज्जा मम धणधण्णोत्ति तिव्य कंखाए। चइऊण धम्मबुद्धिं पच्छा परिपडदि दीह संसारे ॥३१॥
अन्वयार्थ:
धम्मबुद्धि चड़ऊण
- जो जीव धर्म बुद्धि को छोटड़कर ऐसा मानता
मम पुत्तं मम भज्जा तिव्व कंखए धणधण्णोति
- ये मेरा पुत्र है। - ये मेरी भार्या है तथा - तीव्र इच्छा लोभ से युक्त होकर - ये धन धान्य आदि मेरा हैं - (वह) अन्त में - दीर्घ संसार में घूमता है ।।३।।
पच्छा दीह संसारे परिपडदि
भावार्थ- जो जीव धर्म बुद्धि को छोड़कर ऐसा मानता है कि ये मेरा पुत्र है, ये मेरे भाई हैं तथा तीव्र इच्छा/लोभ से युक्त होकर ऐसा मानता है कि मेरा गाय, बैल, भैंस आदि पशु धन हैं, ये मेरा गेहूं, चावल आदि धान्य है। वह अन्त में (मृत्यु के पश्चात्) दीर्घ संसार में घूमता है।
• यौवनं बनवल्लीनामिव पुष्पं परिक्षयि। विषवल्लीनिभा भोग संपदो भनि जीवितम्।।
आ.पु.पर्व १७/१५|| अर्थ- वन में पैदा हुई लताओं के पुष्यों के समान यह यौवन शीघ्र ही नष्ट हो जाने वाला है, भोगसंपदाएं विषवेल के समान है और जीवन विनश्पर है।