Book Title: Barsanupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vishalyasagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 47
________________ बारसालु पेवस्था दयादान के अभाव में संसार भ्रमण पुत्तकलत्त णिमित्तं अत्थं अज्जयदि पाप बुद्धीए । परिहरदि दयादाणं सो जीवो भमदि संसारे ||३०|| अन्वयार्थ: जीवो पुत्त कलत्तणिमित्तं पाप बुद्धीए अत्थं अज्जयदि दया दाणं परिहरदि सो संसारे भमदि अर्थ - - जो जीव पुत्र, स्त्री आदि के निमित्त पाप बुद्धि से धन का उपार्जन तो करता है तथा दया और दान को छोड़ता है वह संसार में घूमता है || ३ || भावार्थ- जो जीव पुत्र, स्त्री आदि कुटुम्बियों के निमित्त पाप बुद्धि ( मोह बुद्धि) से धन का उपार्जन तो करता है किंतु दया और दान को नही करता है इसे छोड़ता है। वह दीर्घ काल तक संसार में घूमता है। ४६ • घटिका जलधारेव गलत्यायुः स्थितद्द्रुतम् । शरीर मिदमत्यन्त पूतिगन्धि जुगुप्सितम् । ।।आ. पु.पर्व १७/१६।। आयु की स्थिति घटीयंत्र के जल की धारा के समान शीघ्रता के साथ गलती जा रही है कम होती जा रही है और यह शरीर अत्यंत दुर्गन्धित तथा घृणा उत्पन्न करने वाला है।

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