Book Title: Barsanupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vishalyasagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 45
________________ वारसामु वेवस्था ५. भाव परिवर्तन - संसार सव्ये पर्याडविदिओ अणुभाग- पढेस- बंध ठाणाणि । जीवो मिच्छत्तवसा भमिदो पुण भावसंसारे ||२९|| अन्वयार्थ: जीवो मिच्छत्तवसा सव्वेपयडि दिदिओ अणुभाग पदेस बंध ठाणाणि पुण भाव संसारे भमिदो - - - - इस जीव ने मिथ्यात्व के वशीभूत होकर सम्पूर्ण कर्मों की प्रकृति स्थिति, और प्रदेश अनुभाग बंध के स्थानों को अनेक बार प्राप्त कर भाव संसार में भ्रमण किया ||२९|| ४४ भावार्थ- मिथ्यात्व के वशीभूत होकर इस जीव ने सम्पूर्ण कर्मों की प्रकृति स्थिति, अनुभाग और प्रदेश बंध के स्थानों को अनेक बार प्राप्त कर भाव संसार में भ्रमण किया है। विशेषार्थ भाव परिवर्तन का स्वरूप-पंचेन्द्रिय संज्ञी पर्याप्तक मिथ्यादृष्टि कोई एक जीव ज्ञानावरण प्रकृतिकी सबसे जघन्य अपने योग्य अन्त: कोडाकोडीप्रमाण स्थिति को प्राप्त होता है। उसके उस स्थिति के योग्य षट्स्थानपतित असंख्यता लोकप्रमाण कषाय अध्यवसाय स्थान होते है। और सबसे जघन्य इन कषाय अध्यवसायस्थानोके निमित्त से असंख्यात लोकप्रमाण अनुभाग अध्यवसायस्थान होते है इस प्रकार सबसे जघन्य स्थिति, सबसे जघन्य काय अध्यवसाय स्थान और सबसे जधन्य अनुभागअध्यवसायस्थानको धारण करने वाले इस जीव के तद्योग्य सबसे जघन्य योगस्थान होता है। तत्पश्चात् स्थिति, कषायअध्यवसायस्थान और अनुभाग अध्यवसायस्थान वही रहते हैं, किन्तु योगस्थान

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