Book Title: Barsanupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vishalyasagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 43
________________ वारसा पेयखा उस्सप्पिणि अवसप्पिणि समयावलियासु णिरवसेसासु । जादो मुद्दो य बहुसो परिभमिदो काल संसारे ||२७|| अन्वयार्थ: ३. काल परिवर्तन - संसार - परिभमिदो काल संसार उस्सप्पिणि अवसप्पिणि णिरवसेसासु समयावलियासु बहुसो जादो या मुदो - - - - काल संसार में परिभ्रमण करता हुआ उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी सम्पूर्ण समयों और आवलियों में ४२ ( यह जीव) अनेक बार जन्मा और मरा है ॥२७॥ भावार्थ- काल संसार में परिभ्रमण करते हुए उत्सर्पिणी और अब सर्पिणी के संपूर्ण समयों और आवलियों में यह जीव अनेक बार उत्पन्न (जन्मा) हुआ और मरा है। में विशेषार्थ - अब कालपरिवर्तनका स्वरूप- -कोई जीव उत्सर्पिणी के प्रथम समय उत्पन्न हुआ और आयुके समाप्त हो जाने पर मर गया। पुन: वही जीव दूसरी उत्सर्पिणी के दूसरे समय में उत्पन्न हुआ और अपनी आयुके समाप्त होने पर मर गया। पुनः वही जीव तीसरी उत्सर्पिणी के तीसरे समय में उत्पन्न हुआ। इस प्रकार इसने क्रमसे उत्सर्पिणी समाप्त की और इसी प्रकार अवसर्पिणी भी। यह जन्मका नैरन्तर्य कहा । तथा इसी प्रकार मरण का भी नैरन्तर्य लेना चाहिए। इस प्रकार यह सब मिलकर एक कालपरिवर्तन है • नैवाऽसतो जन्म सतो न नाशो ( ब्र. स्वयं भू स्तोत्र) I

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