Book Title: Barsanupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vishalyasagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 38
________________ बारसास्वा ३७ शरीरादि भी अन्य है अण्णं इमं सरीरादिगं पि होज्ज बाहिरं दव्यं । णाणं दंसणमादा एवं चिंतेहि अण्णलं ॥२३॥ मूलाचार में यह गाथा ७०४ नं. पर है वहां पर दंसणमादा के स्थान पद सणमादात्ति आया है। अन्वयार्थ: पाणं दसण आदा इमं सरीरादिगं बाहिरं दव्यं पि अण्णं होज्ज एवं अण्णतं चिंतेहि - ज्ञान दर्शन ही आत्मा हैं शेष - ये शरीरादि बाहरी - द्रव्य भी - अन्य हैं - इस प्रकार से अन्यत्व भावना का चिंतन करो ॥२३॥ भावार्थ- हे जीव! ज्ञान दर्शन ही आत्मा है। ये आत्मा के है इसके अलावा ये शरीर आदि बाहरी द्रव्य भी अन्य हैं। भिन्न हैं। आत्मा के नहीं है। इस प्रकार से निरंतर चिंतन करो। • अन्यथा वेद पाण्डित्यं शास्त्र पाण्डित्य मन्यथा अन्यथा परमं तत्त्वं लोका क्लिश्यन्ति धान्यथा।। प. प्र. टी १/२३॥ अर्थ- वेद शास्त्र तो अन्य तरह ही है। नय प्रमाण रूप है। तथा ज्ञान की पंडिताई कुछ और ही है। वह आत्मा निर्विकल्प है। नय प्रमाण निक्षेप रहित वह परमतत्त्व जो केवल आनंद रूप है और ये लोग अन्य ही मार्ग में लगे हुए है। तो वृथा क्लेश कर रहे है।

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