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बार विवरा
४. अन्यत्व अनुप्रेक्षा
. सांसरिक संबंध स्वार्थमूलक
मादा पिदर सहोदर पुत्तकलत्तादि बंधु संदोहो । जीवस्सा संबंध णियकज्ज वसेण वट्टति ||२१||
मूलाचार में यह गाथा इस प्रकार हैमादु पिदु सयण संबंधिणो ये सव्वे वि अत्तणो अण्णे । इह लोग बंधवा ते ण य पर लोगं समं णेति ।। ७०२॥
अन्वयार्थ:
मादा पिदर सहोदर
संदोहो
पुत्त कलत्त बंधु
णिय कज्ज वसेण
वट्टति
जीवस्स संबंधी ण
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माता, पिता, भाई बहिन
शरीर से संबंध रखने वाले
३५
पुत्र स्त्री तथा मित्रादि
अपने निज कार्य (स्वार्थवश ही)
प्रवृत्ति करते हैं (वास्तव में इन सबसे)
जीव का कोई भी संबंध नहीं है | ॥२१॥
भावार्थ- माता-पिता, भाई, बहिन, शरीर से संबंधी पुत्र स्त्री और मित्र आदि अपने निजी कार्य ( स्वार्थ) वश ही प्रवृत्ति करते हैं वास्तव में इन सबसे जीव का कोई
संबंध नहीं है।
विरागामृत
• संसार स्वप्न में मत खोजाना, नहीं तो इसी संसार में घूमोगे । ( दूर नहीं है मंजिल कृति से )