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વારા વારવા
शुद्धात्म स्वरूप उपादेय
एक्कोहं णिम्ममो सुद्धोणाणदसण लक्खणी। सुद्धे यत्तमुपादेयमेवं चिंतेह संजदो ।।२०।।
अन्वयार्थ:
अहं एक्को णिम्ममो - मैं एक हूँ, ममता से रहित हूँ। सुद्धोणाणदसंण लक्षणो - (शुद्ध द्रव्यार्थिक नय से) शुद्ध हूँ, ज्ञान दर्शन
लक्षण वाला हूँ। अत: मुझे सुद्धं एयत्तं उपादेयं - शुद्ध और एकत्व (स्त्रभाव) उपादेय
ग्रहण करने योग्य है। एवं संजदो चिंतेह
इस प्रकार साधुओं को चिंतन करना चाहिए ॥२०॥
भावार्थ- मैं शुद्ध द्रव्यार्थिक नय से एक हूँ, ममता से रहित हूँ शुद्ध हूँ, ज्ञान और दर्शन ही मेरा लक्षण है। अत: मुझे मेरा शुद्ध और एकत्व स्वभाव उपादेय है। इस प्रकार से | साधुओं को निरंतर चिंतन करना चाहिए।
• एकोहं निर्ममः शुद्धो, ज्ञानी योगीन्द्र गोचरः।
बाह्या; संयोगजा भावा, मत्तः सर्वेऽपि सर्वथा ।। अर्थ- मैं एक ममतारहित शुद्ध ज्ञानी और योगियों के द्वारा जानने योग्य हूँ। इसके अलावा संयोगजन्य, जितने भी देहादिक पदार्थ है वे सब मुझसे सर्वथा भिन्न है।