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बारसाणू पवस्वा
१. द्रव्य परिवर्तन संसार
सव्वे वि पोगला खलु एगे भुतुझिया हु जीवेण! असयं अर्णतखुत्तो पोग्गल परियट्ट संसारे ।।२५।।
अन्वयार्थ:
पोग्गल परियट्ट संसारे जीवेण खलु मम्मो गुग्गला अणंत खुत्तो एगे हु भुज्झिया असयं
. पुद्गल परिवर्तन रूप संसार में - इस जीव के द्वारा . नियम से मार्ग पुटगलों को - अनंत क्षेत्र प्रमाण अनंत बार - अकेले ही - भोगकर छोड़ा गया और फिर उसे - खाया गया/भोगा गया ॥२५||
भावार्थ- इस जीव के द्वारा सभी पुद्गलों को अनंत बार भोग कर छोड़ा गया है | तथा पुन: उन्हीं को असकृत (अनेक बार) अकेले ही भोगा गया इस प्रकार अनंत क्षेत्र प्रमाण परिवर्तन को पुद्गल परिवर्तन कहते हैं।
विशेषार्थ- संसरण करने को संसार कहते हैं, जिसका अर्थ परिवर्तन है। यह जिन जीवों के पाया जाता है वे संसारी हैं। परिवर्तन के पांच भेद हैं-द्रव्य परिवर्तन, क्षेत्र परिवर्तन, काल परिवर्तन, भव परिवर्तन और भाव परिवर्तन। द्रव्य परिवर्तन के दो भेद हैं। नोकर्म द्रव्य परिवर्तन, और कर्म द्रव्य परिवर्तन। नोकर्म द्रव्य परिवर्तन का स्वरूप जैसे-किसी एक जीव ने तीन शरीर और छह पर्याप्तियों के योग्य पुद्गलों को एक समय में ग्रहण किया । अनन्तर