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धारसाणू पतला
शाश्वत आत्मा चिन्तनीय
परमढेण दु आदा देवासुर मणुव राय विभवे हिं। वदि रित्तो सो अप्पा सस्सदमिदि चिंतए णिच्वं ।।७।।
अन्वयार्थ:
परमटेण दु आदा देवासुर मणुव राय विभषेहि वदिरित्तो सो अप्पा सस्सदं इदि णिच्चं चिंतए
परमार्थ (निश्चय नय) से जो आत्मा देवेन्द्र, असुरेन्द्र, मनुष्येन्द्र, की विभूति से रहित है
वही आत्मा
शाश्वत है ऐसा नित्य ही चिंतन करना चाहिए ।।७||
भावार्थ- परमार्थ चानि निश्चय नय से जो आत्मा देवेन्द्र आर्थात् सौधर्मेन्द्र, असुरेन्द्र अर्थात् धरणेन्द्र और मनुष्येन्द्र अर्थात् चक्रवर्ती की विभूति धन दौलत, निधि, रत्न खजाने सेना आदि से रहित हैं, ऐसी वही आत्मा हमारी है और शाश्वत रहने वाली है ऐसा चिंतन करना चाहिए।
एगो में सस्सदो अप्पा गाण दसण लक्खणो । सेमा में बाहिरा भावा सब्वे संजोग लक्खणा ।।
(मूलाचार) अर्थ- वास्तव में ज्ञान, दर्शन स्वभावी एक आत्मा ही शाश्वत है
शेष अन्य पदार्थ नहीं वे तो संयोगी अवस्थायें है।