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बारसाणु पेक्खा
अन्वयार्थ:
काल - कवलित चक्री भी
'णवणिहि चउदहरयणं हयमत्त गइंदचाउरंग बलं । चक्के सस्स ण सरणं पेच्छंतो कद्दये कालो ||१०॥
णव णिहि
उदहरयणं
हयमत्त इंद
चउरंग बलं
चक्केसस्स
सरणं ण
पेच्छतो
कालोकये
नवनिधि
चौदह रत्न
घोड़ा, 'मत्त गजेन्द्र / हाथी
चतुरंग सेना ( से युक्त )
चक्रवर्ती को भी
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(यह सपा ) शरण नहीं है की
देखते हुये
काल कर्दन कर देता हैं| ||१०||
भावार्थ- चक्र, छत्र, खड्ग (तलवार), दण्ड, काकिणी, मणि, चर्म, सेनापति, गृहपति, गज, अश्व (घोड़ा), पुरोहित, स्थापित ( कारीगर ) और पटरानी ये चौदह रत्न | तथा काल, महाकाल, पाण्डु माणव, शंख, पद्म, नैसर्प, पिंगल, और नाना रत्न रूप ये नव निधियां | घोड़ा मदोन्मत्त शक्तिशाली हाथी तथा हाथी, घोड़ा, रथ और पदाति रूप चतुरंग सेना से युक्त चक्रवर्ती को भी ये सब शरण नहीं है। इन सब के होते हुये भी जब उसे भी मृत्यु नही छोड़ी तो फिर अन्य किसको छोड़ सकेगी। अर्थात् किसी को भी नहीं। तो फि र क्यों न हम उसके ( मृत्यु के ) आने के पूर्व अपना हित करलें ।