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बारसाण पपरवा
३. एकत्व- अनुप्रेक्षा
स्वधं कर्ता - भोक्ता
एक्को करेदि कम्म एक्को हिंडदि य दीह संसारे । एक्को जायदि मरदिय तस्स फलंभुजंदे एक्को॥१४॥
मूलाचार में यह गाथा इस प्रकार हैएक्को करेइ कम्म एक्को हिंडदिय दीह संसारे। एक्को जायदि मरदिय एवं चिंतेहि एयत्तं ॥७०१।।.
अन्वयार्थ:
एक्को करेदि कम्म य एषको दीह संसारे हिंडदी एक्को जायदि मरदिय एक्को तस्स फलं भुंजदे
- यह जीव एक अकेला ही कर्मों को करता है - और अकेला दीर्घ संसार में - घूमता है - अकेला जन्म लेता है और अकेला मरता है - और अकेला ही उसके फलों को भोगता
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भावार्थ- यह संसारी जीव स्वयं अकेला ही नाना प्रकार के शुभाशुभ कर्मों को करता है। और अकेला ही उनके फलों को भोगता है। तथा अकेला ही जन्म लेता है और अकेला ही मरण करता है। तथा अकेला ही दीर्घ संसार में घूमता है।
• दाणु ण दिण्णउ मुणिवर है ण वि पुजिउ जिण-णाहु। पंच ण वंदिउ परम-गुरू किमु होसउ सिव लाहु ।।
(प.प्र.२/१६८)