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खारसाण परवा .
अकेला ही पुण्य करता है और फल भोगता
एक्को करेदि पुण्णं धम्मणिमित्तेण पत्तदाणेण । मणुवदेवेसु जीवो तस्मफलं भुंजदे एक्को॥१६||
अन्वयार्थ:
जीवो धम्मणिमित्तेण पत्त दाणेण पुण्णं एक्को करेदि तस्स फलं मणुव देवेसु एक्को भुंजेदि
- यह जीव • धर्म के निमित्त - सत् पात्रों को दान देने से - पुण्य को अकेला प्राप्त करता है - और उसके फलों को - मनुष्य व देवों में - अकेला ही भोगता हैं । ।११६||
भावार्थ- यह जीव धर्म के निमित्त सतपात्रों को दान देने से पुण्य को भी अकेला ही करता है और उसके फलों को वर्तमान भव की अपेक्षा कर्म भूमि मनुष्यों में और भावि भव की अपेक्षा भोग भूमियां मनुष्यों में व देव पर्यायों में अकेला ही भोगता है।
• महाव्यसनासंकीर्णे दुःखज्वलनदीपिते । एकाक्येव भ्रमत्यात्मा दुर्गे भवमरुस्थले।।
(ज्ञा,आ.) अर्थ- महा आपदाओं से भरे हुए दुःख रूपी अग्नि से प्रज्वलित और गहन ऐसे संसार रूपी मरुस्थल में यह जीव अकेला ही
भ्रमण करता है कोई भी इस का साथी नहीं है।