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वारसा रोयरखा
ऐसी आत्मा ही शरण है
अरुहा सिद्धाइरिया उवझाया साहु पंचपरमेट्ठी। ते वि हु चिट्ठदि आदे तम्हा आदा हु मे सरणं ॥१२॥
अन्वयार्थ:
अरुहा सिद्ध आइरिया उवज्झाया साहु पंचपरमेष्ठी ते विहु आदे चिट्ठदि
अहंत, सिद्ध, आचार्य उपाध्याय और साधु ये पंचपरमेष्ठी है वे भी निश्चय से आत्मा में रहते हैं इसलिये निश्चय से मुझे अपनी आत्मा ही शरण है।॥१२॥
तम्हा हु मे आदा सरणं
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भावार्थ- आत्मा ही अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु इन पांचों परमेष्ठी । की क्रमिक चेष्टा करता है। इसलिये निश्चय नय से वह अपनी मेरी आत्मा ही मुझे शरण है और कोई शरण नहीं है।
• शीच्यन्ते स्वजनं मूर्खा: स्वकर्मफल भोगिनम्। . नात्मानं बुद्धिविध्वंसा यमदंष्ट्रान्त रस्थितम्।।
(शा. आ.) अर्थ- यदि अपना कोई कुटुंबी जन अपने कर्मवशात मरण को प्राप्त हो जाता है तो राद्धि पार्वजन उसका शोच करते है परन्तु स्वयं यमराज की दाढ़ों में आया
हुआ है, इसकी चिंता कुछ भी नहीं करता है यह बड़ी पार्वता है