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लारसाणु पक्रवा
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मृत्यु काल से इन्द्र भी नहीं बचा
सग्गो हवे हि दुग्गं भिच्चा देवा य पहरणं वजं । अइरावणो गइंदो इंदस्स विजदे सरणं ।।९।।
अन्वयार्थ:
सग्गो हवे हि दुर्ग ये देवा भिच्चा पहरणं वजं अइरावणो गइंदो इंदस्स सरणं ण विजदे
स्वर्ग ही जिसका दुर्ग है
और देवतागण नौकर हैं प्रहार या रक्षक वज्र हैं ऐरावत (जिसका) हाथी है ऐसे इंद्र को (भी कोई) शरण नहीं है ।।९।।
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भावार्थ- स्वर्ग ही जिसका दुर्ग/किला है, देवताओं का समूह जिनका नौकर सेवक है। शत्रुओं पर प्रहार कर अपनी रक्षा करने वाला अस्त्र ही जिसका वज (शक्ति) है। तथा ऐरावत जिसका हाथी है। ऐसे सौधर्मेन्द्र को भी कोई शरण नहीं है अर्थात मृत्यु से नहीं बच सका तो फिर संसार में अब ऐसा कौन सी वस्तु हैं जो मृत्यु से बचा सकेगी। अथवा | ऐसा कौनसा व्यक्ति है जो मृत्यु से बच सकेगा? अर्थात-चरम शरीरी जीवों को छोड़कर कोई नहीं है।
• यह काल का जाल अथवा फन्दा ऐसा है कि क्षण मात्र मे जीवों को फीस लेता है और सुरेन्द्र, असुरेन्द्र, नरेन्द्र तथा नागेन्द्र भी इसका निवारण नहीं कर सकते हैं।
(ज्ञा. आ.)