Book Title: Barsanupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vishalyasagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 22
________________ खारसाणु पक्रवा आत्म देह का संबंध क्षीरनीरवत जीवणिबद्धं देहं खीरोदय मिव विणस्सदे सिग्धं । भोगोपभोग कारणदव्वं णिच्चं कहं होदि।।६।। अन्वयार्थ:जीव णिबद्धं देहं (जब) जीव से संबद्ध शरीर खीरोदय इव क्षौर नीर की तरह एक जैस दिखने पर भी सिग्धं विणस्सदे - शीघ्र विनष्ट हो जाता है भोग उपभोग कारणं दव्ध - (फिर) भोगोपभोग के कारण भूत इत्य/ पर्याय/वस्तुयें णिचं कहं होदि - नित्य कैसे हो सकती हैं? भाशर्थ- क्षीर नीर की तरह, एक मेक रहने वाला जीव से अनबद्ध यह शरीर भी जब शीघ्र ही नष्ट हो जाता है तो फिर भोगोपभोप की सामग्रियां कैसे शाश्वत रह सकती हैं। फिर उनमें आसक्ति क्यों? अर्थात् आसक्ति नहीं होना चाहिए। विगग-निधि मौत का कोई भरोसा नहीं, कब तुम्हे ग्रास बनाले | चाहे राजा हो या रंक, अमीर हो या गरीब, बृद्ध हो या बालक मौत किसी को नहीं छोड़ती। मौत बचपन और पचपन को नहीं देखती। अत: जीवन में मौत रूपी यमराज तुम्हें ग्रसने आए, उसके पूर्व ही अपने जीवन को धर्म से सुसज्जित करलो। (ऐसे चलो मिलेगी राह कति से)

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