Book Title: Barsanupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vishalyasagar
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ बारसाण करवा अहमिंदादि पद थिर नहीं जल बुब्बुद- सक्कवणु-खण- रुचि घण सोहमिव थिरं ण हवे । अहभिंद ठाणाई बलदेव पहुदि पज्जाया ।५।। जाया - अन्वयार्थ: अहमिंद वाणाई बलदेव पहुदि पन्जाया जल बुखुद सक्कधणु खण धण सोहं इव सस्सयं ण हवे अहमिद्रों के स्थान/पद बलदेव आदि पार्यायें जल बुद् बुद् इंद्रधनुष बिजली और बादल को शोभा की तरह। शाश्वत नहीं है। ||५|| भावार्थ- जल के बुदबुद (जल के गुब्बारे) इंद्रधनुष, बिजली, बादल की शोभा (सुंदर आकृति) की तरह, अहमिद्रों के पद एवं बलदेव आदि की पर्याय भी नाशवान है तो फिर संसार में कौन सा ऐसा पद या पर्याय है जो शाश्वत ध्रुव रह सकती हो? अर्थात् कोई नहीं। ऐसा चिंतन करो। ऐसा करने से तज्जन्य राग द्वेष, मोह छूटता है। चइऊण महामोहं विसए मुणिऊण भंगुरे सव्वे । णिन्सियं कुणह मणं जेण सुहं उत्तम लहह ।। (का, अ. २२) अर्थ- हे भव्य जीवो। समस्त विषयो को क्षण भंगुर जानकर महामोह को त्यागो और मन को विषयों से रहित करो, जिससे उत्तम सुख प्राप्त हो।

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108