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बारसाणु चवस्था
१. अध्रुव अनुप्रेक्षा ये शाशवत नहीं
वर भवण-याण-वाहण-सयणासण-देव-मणुव-रायाणं । मादु-पिदु-सजण-भिच्च संबंधीणो व पिदि वियाणिच्चा ।।३॥
मूला चार में यह गाथा निम्न प्रकार से हैठाणाणि आसणणि य देवासुर इड्ढि मणुय सोक्खाई।
मादु पिदु सयणसंवासदा व पीदी विय अणिचा ॥३१५।। अन्वयार्थ:वर भवण
- श्रेष्ठ (ऊंचे) भवन याण
यान वाहण
वाहन शयन
सोने की शैय्या आसन
बैठने का सिंहासन आदि देव मणुव रायाणं
देव, मनुष्य, राजा मादु-पिदु सजण
माता, पिता स्वजन भिल्व व संबंधीयो
नौकर तथा पुरजन पिदि
- इत्यादि की प्रीति को आणिचा वियाण - (हे जीव तूं) अनित्य जान ||३||
भावार्थ- हे जीन तु ऊंचे-ऊंचे भवन, अटारी, महल तथा मोटर कार, रथ, साइकिल, स्कूटर, हेलीकॉप्टर, वायुयान आदि यान) तथा हाथी, ऊंट, घोड़ा, बैल. रेलगाड़ी आदि वाहन। प्लाट पलंग शैया, कुर्सी, बेंच, चौकी, सिंहासन आदि आसन। और देव मनुष्य राजा, माता, पिता और स्वजन नौकर तथा पुरवासी इन्हें अनित्य जानो।