________________
बारसाण पक्रबा
अनुप्रेक्षाओं के नाम
अद्भुष मसरण-मेगत्त-मण्ण-संसार-लोग-मसुचित्तं । आसव-संवर-णिजर धम्मं बोहिं च चिंतेजो ।।२।।
अन्वयार्थ:
अद्भुवं, असरणं एगत्त . अनित्य (अध्रुव), अशरण, एकत्व अण्ण संसार लोगं असुचितं - अन्यत्व संसार, लोक, अशुचित्व आसव संवर णिज्जर . आम्रव, संवर, निर्जरा धम्मं च बोहिं
धर्म और बोधि इनका चिंतेज्जो
- चिंतन करो ॥२॥ भावार्थ- ध्यान और स्वतत्त्व के चिंतन में कारण भूत
(१) अध्रुव (अनित्य) (२) अशरण (३) एकत्व (४) अन्यत्व (4) संसार (६) लोक (७) अशुचित्व (८) आम्रव (९) संवर (१०) निर्जरा (११) धर्म (१२) बोधि
दुर्लभ
ये बारह अनुप्रेक्षायें हैं।
पूज्य आचार्य श्री उमा स्वामी ने इन बारह अनुप्रेक्षाओं का क्रम तत्त्वार्थ सूत्र में निम्न प्रकार से दिया है।
अनित्याशरण संसारैकत्वा न्यत्वाशुच्यानव संवर निर्जरालोक बोधि दुर्लभ धर्म स्वाख्या तत्त्वानुचिन्तन मनुप्रेक्षाः तत्वार्थ सूत्र ९/७
अर्थात्: (१) अनित्य (२) अशरण (३) संसार (४) एकत्व (५) अन्यत्व (६) अशुचि (७) आस्त्रच (८) संवर (९) निर्जरा (१०) लोक (११) बोधि दुर्लभ (१२) धर्म ये स्वतत्त्व है इनका वार वार चिंतन करना अनुप्रेक्षा है।।
विगगमन अनुप्रेक्षाओं के चिंतन से समता रूपी सुख उत्पन्न होता है समता आत्मा का | स्वभाव है एवं वही आत्मीय स्तूप है
(ऐसे चलो मिलेगी राह कृति से),