Book Title: Barsanupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vishalyasagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 17
________________ वारसाणु पैवस्वा श्री वीतरागाय नमः - बारसाणु पेक्खा सिरि कोंड कुदायरियों परुवदा मंगलाचरण / ग्रंथ प्रतिज्ञा मिऊण सव्व सिद्धे झाणुत्तम खत्रिद दीह संसारे । दस दस दो दो व जिणे दस दो अणुपेहणं श्रोच्छे ॥ १ ॥ - अन्वयार्थ : उत्तम झाण दीह संसारे खविद सव्व सिद्धे व दस दस दो दो जिणे णमिण दस दो अणुपेहणं वोच्छे - - - - उत्तम ध्यान (धर्म, शुक्ल) से जिन्होंने दीर्घ संसार को नष्ट कर दिया है ऐसे सम्पूर्ण सिद्धों को और चौबीस जिनेन्दों (तीर्थकरों ) को नमस्कार करके बारह अनुपेक्षाओं को ( मैं कुंदकुंदाचार्य) कहूँगा ॥१॥ १६ भावार्थ - उत्तम धर्म, ध्यान और शुक्ल ध्यान से जिन्होंने दीर्घ संसार को नष्ट कर दिया है ऐसे अतीत, अनागत और वर्तमान के सभी सिद्धों को तथा चौबीस तीर्थंकारों को नमस्कार करके मैं (कुंद कुंदाचार्य) बारह अनुपेक्षाओं को कहूँगा । १. यह गाथा मूलाचार में निम्न प्रकार से है । सिद्धे णमंसिदूणय झाणुत्तम खविय दीह संसारे । दह दह दो दो य जिणे दह दो अनुणवे हणा वुच्छं ।। ६९३ ।।

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