Book Title: Barsanupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vishalyasagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 15
________________ बारसाणु वेनखा जरा संभल प्रस्तुति - हुआ प्रभात, जब आयी लालिमा पूर्व दिशा में खिले कमल सरोवर में बिहरा विहंगम रख कर रहे नग-जग में ढली लालिमा हुआ मध्यान्ह तडग तपन पड़ी झुलसे तभी पथ पथ में बीते क्षण कुछ पल मुर्झा गया दिनकर हुई शाम, गया सूर्य अस्ता चल हो गये पक्षी मौन साधना रत ये है तेरी हालत उदित होना अस्ताचल को चले जाना यह प्रकृति का धर्म है इसे न ही कोई टाल सका तु क्या टाल पायेगा संभल अपने में तू नहीं तो मौत तेरे खड़ी बगल में १४ मुनि विशुद्ध सागर जी

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