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श्रार्यमतलीला ॥
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शांत कविताओं की बात । वासजीन जीत किये
है उससे माहोला है कि जोगीन प्रधानपुरुषको व
-
कृष्ण
तो यह बात प्रनिदु थी कि वह पनी कविताएं में असंभव राय दर दिया करते हैं जैसा कि एक उर्दू क विने लिखा है--नातवानीच बचाया कोहि में ही फिरती कुत्रा थी मैं न था "धांत प्रीतम की जुदाई में में ऐसा दुखा और शरीर हो गया कि मृत्यु को मा रने के वास्ते आई परन्तु अपने शरीर होने के कारा में मृत्यु ही न पड़ा और मृत्यु दगया। प्यारे पाठको ! विचार कीजिये कविने केसी गप्प मारी है शरीर इतना भी कृष हो सकता है कि मृत्युको भीड़ष्टिगोचर न हो-- हम
हाई का उन से दान के वास्ते ओट से थे वा भी गीत भंग धतूरा अदिक कोई नकी वस्तु पनि स मनोम कहते थे उम ममय कलांग गाते थे वा श्रमिमें होम करके मगध गाये जाते थे वा जा गीत ग्रामीण लोग बड़ाई झगड़े के ममयलडाई की उत्तेजना देने और शत्रुओं की मारनेके बास्ने कसने के वास्ते गाथेवा और प्रकारके गीत जो माधारा मनुष्य गाया करते थे उनका मंग्रह होकर वेद बने हैं - इमी का
कृष
दृष्टि
क
एकएक विषयके सेकड़ों गोल बेद में मौजूद हैं- यहां तक कि एक विष
वियोंकी
तो
परन्तु स्वामीजी ने हमसे भी बढ़िया उड़ाई है कि प्रकारका विज्ञान म नुष्य की बदों से ही होता है२२ विज्ञान की बाजी अमरीका और जापान आदि देश के विद्वानों को मानम वेदोंमें कहां हैं? परन्तु यदि गोटी शिक्षा भी वेदों में मिलती जी सृष्टि की प्रादिमें विना मा बाप उत्पन हुए मनुष्य श्री बनने के वा मनुष्य जरूरी है, तो भी यह ग्रहण किपरे प्रकार उचित हो जाता कि यकी सर्व शिक्षायें वेदोंदी में प्राप्त हुई हैं परन्तु षदों में तो हमारी भी शिक्षा नहीं है वरन बंद शिक्षास्तु
गीता में विषय भी वह ही दृष्टान्त भी बद ही और बहुतसे गीत शब्द भी वही है । आज कल धार्मिक मगाचार पत्रों में स्वदेशी के प्रचारके वास्ते अनेक कविता पती हैं और गजाचार पत्रों से अलग भी स्वदेशी मार पर अनेक कवितायें बनाई जातीं हैं यदि इन सब कविताओंको संग्रह करके एक पस्तक बनाई जाने तो सर्व पुस्तक गीतो कड़ों और हजारों होकर बहुत मोटी पुस्तक बन जावेगी परन्तु विषय मारी पुस्तक में इतना ही निकलेगा कि अन्यदेशकी देशका धन विदेशको
नहीं है - वेद तो गोलका संग्रह है ओर जाता है और यह देश निर्धन होता