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मार्यमतलीला ॥
(७ (मदिरम् ) मादक द्रव्य- देवे और गुख वेलेवें जो ये बडे हो
परन्त वेदों में कही सपनहोसोम और तुम दोनों की इच्छा कराए पदापि मदिरा नहीं हो सकती है ब-(सोमासः) ऐचर्य युक्त माश रहित रन बह भंग और पता है जिसको (अतिरोमालि) अतीवरीमा अर्थात् वेदों के गीत बनने के समय पिया क- नारियल की जटाओं के प्राकार समा-1 रते थे और जिस को अब भी वेदों के | तन सुखों के समान औरोंसे तिरछे मानने वाले हिन्दू लोग बहुधा कर शुद्धि करने वाले पदार्थों और तुम दोपीते हैं । यसप देश में भंग का प्रचार नों को चारों ओर से सिद्ध करें उम नहीं है यह लोग भंग को नहीं जानते को तुम पित्रो और अच्छे प्रकार प्राप्त हैं इन कारण भंग का अनभव होगा होशोउनको असम्भव पाइसही हेतु उन्हों। (नोट) वेद में प्रतिरोमाथि शब्द ने यह गलती खाई है परन्तु हम स्वा- जिसका अर्थ है बहुत रोमवाला स्वामी मी जी के प्रों के अनुसार ही वेद जी ने भी प्रतीवरीमा अर्थ किया है। वाक्यों से सोम को भंग और धतूरा| परन्तु अर्थ को रलाने के वास्ते यह सिद्ध करेंगे-सोम भंग और धतूरे के सि | भी लिख दिया है कि अर्थात नारियचाय और कोई वस्तु होही नहीं सक्ती-ल की जटाओं के प्राकार। है-सोम का अर्थ वास्तव में चन्द्रमा है। भंग सिल बडे पर रगड़ी जाती है। चन्द्रमा शीतल होता है और इसदेश जिसका बर्णन नीचे लिखे वाक्यों में के कवि लोग शीतल बस्तुको चन्द्रमा है और रगड़ कर पानी मिलाने का से उपमा दिया कहते हैं भंग पीने वा- कयन है। ले भंगको ठंडाई कहते हैं इस ही से ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त १३००२ ऐसा मालम होता है कि कवियों ने हे सभापसि अतीव प्यासे बेल भंग का नाम मीम रखलिया था- के समान वलिष्ठ विभाग करने वाले __ भंग का पत्ता देखने पर मालम हुधा प्राप शिलाखंडों से निकालनेके योग्य कि उस पर छोटे छोटे बस रोमहोते | मेघसे बढ़े और संयुक्त किये हुवे के सहैं और पत्ते पर तिर्की लकीर होती मान सोम को अच्छे प्रकार पिनोहैं ऐसा ही स्वरूप वेद में सोम का माग्वेद प्रथम मंडल सूक्त १३७० बणन किया है
| हे प्राण और तदान के समान सर्व ऋग्वेद प्रथम मंडल सक्त १३५ ०६ मित्र और सर्वोत्तम सज्जमो हमारे
या की चाहमा करने वालों ने जलों अभिमुख होते हुए तुम तुम्हारी जिस | में उत्पन्न किई ( सोमः ) बड़ी २ श्री. निवास कराने वाली घेन के समान षधि पुष्टि करती हुई तुम दोनों को पत्थरों से बड़ी हुई सोम बल्ली को