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प्रायंमतलीला ॥
(३) भी अथवा प्रभात समय में ( सोमम् ) । लम क्या विषय होगा? इस कारण हजन का पान करता है।
|मको यजर्वेद के विषय का भी नमूना ऋग्वेद पंचम मण्डन सूक्त ४४ ऋ० १४ दिखाने की जरुरत हुई है जिस से प्र
जो ( जागार ) अविद्या सप निद्रा गट हो जावे कि यजर्वेद में भी ऐसे ही से उठके जागने वाला उसको यह (मोमः) | गंधारू गीत हैं। हम अपने पाठकोंको सोमनता श्रादि औषधियों का समूह यह भी निश्चय कराते हैं और श्रागाया ऐश्वर्य के सदृश निश्चित स्थान वाला मी सिद्ध भी करेंगे कि ऋग्वेद और यमित्रत्व में आप का मैं हूं इस प्रकार |
जर्वेदके अतिरिक्त जो अन्य दो घेद हैं। कहता है।
उन में भी वैसे ही गीत है जैते माग्वेद ऋग्वेद पंचम मगनुल सूक्त ५१ ऋ०३ हे बुद्धिमान आप प्रातकाल में जाने
में दिखाये गये हैं । बरन उन दो वेदों वाले विद्वानों के और बुद्धिमानों के
1 में तो बहुधा वह ही गीत हैं जो ऋ
| ग्वेद में हैं और यह ही कारण है कि साथ मोमलता नामक औषधि के रस | के पीने के लिये प्राप्त हूजिये।
| स्वामी दयानन्द जी ने सन दो वेदों
का अर्थ प्रकाश करना व्यर्थ समझा है आर्यमत लीला ॥
यजुर्वेद के मज़मून को सिलसिले बार [ग-भाग] तो हम भागामी लेखों में दिखावेंगे-परयजद ।
न्तु इससे पहले हम बानगीके तौर
पर कुछ ऋचाओं का अर्थ स्वामी द(१३) वेद धार हैं जिन में से ऋग्वेद और यानन्द जी के भाष्प में से लिखते हैं
काभाय स्वामी दयानन्दजी ने जिससे मालूम हो आवेगा कि यनर्वेद किया है बाकी दो वेदों कामाय नहीं में किस प्रकार के गंधार गीत हैं:किया है। स्वामी दयानन्द शोके अर्थों यजुर्वेद अध्याय १८ चा १२ के अनुसार हमने ऋग्वेद के बहुतमे वा- “मेरे चावल और माठीके धाम मेरे क्य लिखकर पिछले लेखों में यह सिद्ध जौ और अरहर मेरे उरद और मटर किया है कि वेद कोई धर्मशिक्षा की | मेरा तिल और नारियल मेरे मंग पस्तक नहीं है यहां तक कि बह सा | और उसका बनाना मेरे चणे और धारण शिक्षाको भी पस्तक नहीं है - उमका सिद्ध करना मेरी कंगुनी और रन ग्रामीया मिसानोंके गीतोंका बेसि- उसका बनाना मेरे सूक्ष्म 'चावल और लसिले संग्रह है-शायद हमारे पाठकों उन का पाक मेरा समा (श्यामाकाः) मेंसे कोई यह सन्देह करता हो कि ऋ. | और मडुमा पटेरा चेना आदि छोटे ग्वेद में ही मनाही किसानों के गंवर अन्न मेरा पसाई के पावल जो कि गीत हैं परन्तु अन्य वेदों में नहीं मा- बिना बोए उत्पन्न होते हैं और इन