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ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका पृष्ठ १८५
"इस प्रकार प्राणायाम पूर्वक उपा सना करने से आत्मा के ज्ञानका प्रावरणा अर्थात् ढांकने वाला जो अज्ञान है वह नित्यप्रति नष्ट होता जाता है श्रीर ज्ञानका प्रकाश धीरे २ बढ़ता जाता है
प्रार्यमतलोखा ॥
इम प्रकार लिखने पर भी स्वामी जीको यह न सूझी कि मुक्ति प्रस्था तक बढ़ते घढ़ कहां ज्ञान बढ़ जाता स्वामी दयानन्दजीने यह मब कुछ है । और कहां तक बढ़ना रुकजाता लिखा परन्तु स्वामीजीको मुक्ति से कुछ | है | स्वामीजीको बिचारना था कि ज्ञानका इस प्रकार बढ़ना जीवने पृथक् किमो दूसरी वस्तु के सहारे पर नहीं है।
ऐमी चिढ़ थी कि उनकी मुक्तजीवको प्रशंसा तनक भी नहीं भाती थी । जब ही तो उन्होंने मुक्तिको कैदखा
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जिस प्रकार कि पानीका गर्म होना के समान लिखा और नाना प्रकार अग्निके सहारे पर होता है कि जिके स्वाद लेने के वास्ते मुक्तिमे लौटकर तना अग्नि कमती बढ़ती होगा पानी संमार में जाने की आवश्यकता बताई। गर्म होजागा बरण यहां तो जीवके तब वह यह कब मान सकते थे कि निज स्वभावका प्रगट होना है । जीव मुक्ति में जीवको पूर्णज्ञान प्रकट हो के ज्ञानपर जीयावरण झारहा है उम जाता है और वह सब कुछ जानने ल का दूर दीना है अर्थात इच्छा द्वेषागता है अर्थात् सर्वज्ञ होजाता है। इस दिक मैल जितना दूर होता जाता है कारक स्वामीजीने यह नियम बांधउतना उतना ही जीवके ज्ञानका प्रादिया कि जी प्रत्यक्ष है वह सर्वज्ञ | वरणा दूर होता जाता है । और जीव होही नहीं सकता है अर्थात् मुक्ति में | का ज्ञान प्रगट होता जाता है। ब भी प्रत्यक्ष ही रहता है ॥ जीव पूर्ण शुद्ध हो जाता है अर्थात् पूर्ण आवरण नष्ट हो जाता तब जीव का पूर्ण ज्ञान प्रकाशित हो जाता है। तात्पर्य यह है कि मुक्ति दशा में जीवके ज्ञानमें कोई रुकावट वाकी नहीं रहती है अर्थात वह सर्वज्ञ होजाता है।
restraint बुराई करने में स्वामी जी ऐसे पक्षपाती बने हैं कि वह प्रपने लिखेको भूलजाते हैं देखिये यह सत्यार्थप्रकाशमें इस प्रकार लिखते हैं।
सत्यार्थप्रकाश पृष्ठ ४२ 'प्राणायामादशुद्धिक्षयेज्ञान दी
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प्तिराविवेक ख्यातेः ॥
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- जबतक मुक्ति न हो तब तक उस के आत्मा का ज्ञान बराबर बढ़ता जाता है-'
सर्वक्ष के शब्द पर शायद हमारे आर्य भाई खटक क्योंकि वह कहेंगे कि म
" जब मनुष्य प्राणायाम करता है। देश तो ईश्वरका गुगा है । इस कारण लब प्रतिक्षण उत्तरोत्तर काल में अशुद्धि | यदि जीव मुक्ति पाकर सर्वज्ञ होजावे का नाश और ज्ञानका प्रकाश होजाता तो मानो वह तो ईश्वर के तुल्य होगया