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भार्यमतलीला ॥
" प्रमाणाभाधानतस्मिदिः ॥सांon | अतिर्राप प्रधान कार्यत्वस्य ॥ मां० ०५॥ सू०१०
॥ अ५ सू० १२ अर्थ--ईश्वरकी मिदिमें कोई प्रगागा | अर्थ-यदि यह कहा जाये कि प्रत्यक्ष नहीं घटता है इस कारगा ईश्वर हैही और अनुमान नहीं लगते हैं तो शब्द नहीं। प्रत्यक्ष प्रमाण तो ईश्वर के विषय प्रमाणा मे ही ईश्वर को मान लेना चामें है ही नहीं क्योंकि ईश्वर नजर नहीं हिये-उमके उत्तर में मारुप कहना है
आता हम कारण अनमान की बावत | कि अति आर्यात् उन शास्त्रों में शिन कहते हैं।
का शब्द प्रमाण हो ईश्वर का बर्णन "मम्यन्धा भावान्नानुमानम् , मां नहीं है बरगा अति में भी मर्व कार्य ॥ ०५॥ सू२०११
प्रधान अर्थात प्रकृति के ही बताये अर्थ--मम्बन्ध के प्रभाव से अनुमान | गये हैं-- भी ईश्वर के विषय में नहीं लगता है- स्वामी दयानन्द प्ररस्वती जी ने भी अर्थात् विना व्याप्तिके अनुमान नहीं | मत्यार्थ प्रकाश के पष्ठ १८ पर सांख्य हो सकता है।
के यह तीन सूत्र दिये हैं-- माधन का माध्य बस्त के माथ नि- "ईशरा मिः " ॥ मां॥१॥स० ९२ त्यमम्बंध को च्याप्ति कहते हैं । जब | "प्रमाणामाबाजतस्मितिः, मां ॥ यह संबंध पहले प्रत्यक्ष देख लिया था. ५॥ मू०१० ता है तो पीछे से उन मम्झंधित ब- | “सम्बन्धाभावान्नानमानम् , ॥सां०॥ स्तनों में से माधन के देखने से माध्य | ०५॥ मू० ११ ।। बस्तु जान ली जाती है हम को अ- और अर्थ इनका मत्यार्थप्रकाश नमान कहते हैं जैसे कि पहले यह प्र- पृष्ठ १०० पर इस प्रकार सरस्वती जी त्यक्ष देखकर कि धुनां जब पैदा हो ने लिखा है -प्रत्यक्ष से घट सकते ई. सा तब अमिमे होता है अग्नि और श्वर की सिद्धि नहीं होती ॥१॥ क्योंकि थएं का सम्बंध अर्थात् व्याप्ति मान- जब उसको मिद्धि में प्रत्यक्ष ही नहीं ली जाती है पश्चात् धएं को देखकर | नो अनुमानादि प्रमाण नहीं हो सअग्नि का अनमान कर लिया जाता| कता ॥२॥ और व्याप्ति सम्बंध नरोने पाका प्रत्यक्षही नहीं है। मे अनुमान भी नहीं हो सकता पनः इस हेतु उमका किसी से संबंध ही प्रत्यक्षानुमान के न होने से शब्द प्र. कैसे माना नावे और कैसे व्याप्ति का-माण प्रादि भी नहीं घट सकते इस यम की जावे जिससे अनमान हो जब कारण ईश्वर की सिद्धि नहीं होसक्ती। सम्बंध ही नहीं तो अनमान कैसे हो इसका उत्तर सरस्वती जो इस प. । सकता है