Book Title: Aryamatlila
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Tattva Prakashini Sabha

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Page 172
________________ श्रार्थमतलीला ॥ १६८ तर उपनिषद् प्र० ४ । मं० ५ ॥ अर्थ इनका स्वामी जी इस प्रकार करते हैं । (उत्तर) यहां ईश्वर को मिद्धि में प त्यक्ष प्रमाण नहीं है और न ईश्वर जगत् का उपादान कारण है और परुष से विलक्षण अर्थात् सर्वत्र पूर्ण होने से परमात्मा का नाम पुरुष और शरीर में शयन करने से जीव का भी नाम पुरुष है क्योंकि इसी प्रकरण में कहा है । जो जन्म रहित सत्व, रज, तमोगुख रूप प्रकृति है बढी स्वरूपाकार से व हुत प्रजारूप हो जाती है अर्थात् प्रकृति परियागिनी होने से अबस्थान्तर हो जाती है और पुरुष अपरिप्रधानशक्तियोगाच्च संगापतिः ॥ मां गामी होनेसे बह अवस्थांतर होकर दूसरे रूप में कभी नहीं प्राप्त होता सदा कूटस्य निर्विकार रहता है । " ॥ २ ॥ ५ ॥ सू ८ सत्तामात्राच्चेत्सर्वैश्वर्य्यम् ॥ सां० ॥ अ० ५ ॥ सू० ल श्रुतिरपि प्रधान कार्यत्वस्य ॥ सांग छ०५ ॥ सू० १२ इनका अर्थ मरस्वती जी ने इन मकार किया है । इस प्रकार लिखकर सरवनीजी ब|हुत शेखी में जाकर इस प्रकार लिखते हैं" इसलिये जो कोई कपिलाचार्यको अनीश्वरवादी कहना है जानो वही अनीश्वरवादी है कपिनाचार्य नहीं । " पाठकगा! देखी सरस्वतीजीकी उहुण्डला ! इस प्रकार लिखने वालेको सरस्वती की पदवी देना इम कन्निकाल ही की महिमा नहीं तो और क्या है? मरस्वतीजी के इस वचनको जो प्रमाण मानते हैं उनसे हम पूछते हैं कि ईवर उपादान कारण न मेही निमित्त कारण ही मही परन्तु कपिलाचार्य ने जो यह भिद्ध किया है कि ईश्वर में कोई प्रमाण नहीं लगता है अर्थात् न वह प्रत्यक्ष है न उसमें अनुमान लगता है और न शब्द प्रमाणमें उमका वर्णन है इस हेतु ईश्वर प्रसिद्ध है इस का उत्तर मरस्वती जी ने क्या दिया है ? क्या उपादान कारके ही सिद्ध करने के वास्ते प्रमाण होते हैं और निमित्त कारणाके बास्ते नहीं ? सृष्टिके वास्ते यदि पुरुष को प्रधान शक्तिका योग हो तो पुरुष में संगापत्ति हो जाय अर्थात् जैसे प्रकृति सूक्ष्म मे मिलकर कार्य रूप में संगत हुई है वैसे परमे वर भी स्थूल हो जाय इस लिये पर मेश्वर जगत का उपादान कारण नहीं किन्तु निमित्त कारण है जो चेतन से जगत् की उत्पत्ति हो तो जैमा परमे वर समग्रैश्वर्ययुक्त है बैमा संसार में भी aari का योग होना चाहिये सो नहीं है इम लिये परमेश्वर जगत् का उपादान कारण नहीं किन्तु निमित्त | कारण है क्योंकि उपनिषद् भी प्रधान ही को अगत् का उपादान कारण कहाना है । लोहित शुक्ल कृष्णां वही प्रजाः सृजमानां स्वरूपाः ॥ श्वेताश्व

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