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भार्यमतलीला ॥ प्रवृत्ति नहीं होती है और चतनाशक्ति | निजि समाधि होती है-अर्थात् सं. अथात् ज्ञान ही प्रान रह पाना है--स्कार विल्कुन बाकी नहीं रहना है
नोट-योगशास्त्रके इम सूत्रसे सत्या- और जीव अपनी आत्मा की में स्थित यंप्रकाश के मुक्तिविषयक मर्व मिद्धान्त होजाता है। अमत्य हो जाते हैं - क्योंकि इम सूत्र के नोट-उपर्यत माधनोंमे अर्थात् कर्मी अनमार मुक्ति कर्मों का फल नहीं कर पा | का मर्वणा नाश करनेसे योगदर्शनमें मकमौके नाशका काम मुक्ति है - मुक्ति | क्तिकी प्राप्ति कही है परन्तु दयानन्द के पश्चात् प्रागामी भी फाँको उत्व- सरस्वती जी भक्ति भी कर्मों का फन त्ति बन्द होजाती है इस हेतु मुक्ति में बताते हैं और कहते हैं कि यदि ईश्वर लौटना भी नहीं हो न कता है सत, अनित्य फर्मों का फन नित्य मुक्ति देव | नज और तम तीनां गम का नाश हो तो यह अन्याई होजाये। कर सक्तिनी ब में प्रकृति भी नहीं रह गमनः कर्माशयो दृष्टादृष्टजन्म ! नी है जिनमे वह संगो शरीर ब- वेदनीयः " ॥ १०२ मू० १२ ॥ नावै और कहीं घूमता फिरै बरण अ- अयं केश अर्थात् राग द्वेष अविद्या पनेही म्वाइप में स्थित रहता है और .
| प्रादि ही कर्म प्राणपके मृगकार गा हैं | इस प्रकार स्थिर रहने से यह पापागा
जो दृष्ट तथा अदृष्ट जन्मों में भीगा की मूर्ति ममान जड़ नहीं होगाता
जाता है। है यागा अपने ज्ञान में मग्न रहता है
" तेहाद परितापफना. पुरयापुराय | वह पूर्ण चेतन स्वप अर्थात् ज्योति
हेतत्वात्” ॥ २ ॥१४॥ स्वरूप हो जाता है
अर्थ ----वे आनन्द और दुःख फन युक | "तजः समारोऽन्यसंस्कार प्रतिबन्धी "
हैं पुगय और पापके हेत् होनेसे अपांत् यो० अ० १ :०
| कर्मो के दो भेद हैं पुण्य कर्म और पाप अर्य-उक्त ममाधिमे जो उत्पन्न हुआ। संसार वह अन्य संकायका नाग ककर्ष पुरा गर्मों में मांमारिक सुख मिलता रने व ना होना है -प्रांत मुक्तिका | है और पापकों ने दुःख मिलना है। उपाय ममाधि है और उसमे मर्व म- . मत्व पुरुपयो: शुद्विमाम्ये कैवल्यस्कार अर्थात् कर्मनाश होने हैं-- | मिति " ॥ ३ ॥ सू० ५४॥ इमके आगे जी संस्कार ममाधिसे उ. अर्थ-जन सब ओर पप दोनों श. त्पन्न होता है उनके नाश का वर्णन क- दुतामें ममान हो जाते हैं तब कैवल्य
होजाता है अर्थात् किमी वस्त्र में जब " तस्यापि निरोधे मर्मनिरोधानि | कोई दूपरी वस्तु मिलती है तबही जिस्ममाधिः ” अ० १ सू० ५१॥ोट कहा जाता है पाय दोनों वस्त् प्र। अर्थ-तुम संस्कार के भी निरोध से | नग २ पारदी जावें तो दोनों वस्तु स्व