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भार्यमतलीला ॥ ~~..................... नों गुखों से रहित स्वच्छ हो सब वह सर्वत नहीं है तब तक शान में कमी | संकल्पी गरीर बना सकता है या नहीं ही है और इस कारण क्लेश है मरऔर संबपी शरीर बनाने की इच्छा वतीजी का भी यह ही कथन है कि और सर्व स्थानों का मानन्द लेते फि- सर्वच होने के कारण जीव एक ही सरना राग या वैराग्य ? क्या बेराग्य मय में सर्व बस्तु ओंका ज्ञान प्राप्त क. के द्वारा मुक्ति प्राप्त करके मुक्त होते रके एक साथ ही प्रानन्द नहीं ले ही फिर जीव रागी हो जाता है? सकता है बरण प्रसपास होने के कारण क्या यह अत्यंत बिरुद्ध यास नहीं है? नम को स्थान स्थान का ज्ञान प्राप्त और पदि ऐसा हो भी जाना है तो करने के वास्ते जगह २ घूमना पड़ता यह अवश्य दुःश में है क्योंकि जहां है क्या यह थोडा क्लेश है ? और सिराग वहां ही दमय है देखिये योग- सपर स्वामी जी कहते हैं कि मुक्तजीव शास्त्र में ऐसा लिखा है
परमानन्द भोगता है। योगशास्त्र में सुखानुशपी रागः ॥ २ ॥
| तो अविद्या को ही सर्व क्लेशों का
मूल बर्थन किया है. अर्थ-सुख के साथ अनुबंधित परि
| अविद्या क्षेत्रमुत्तरेषां प्रसुप्तसनु बि-1 शाम को राग कहते हैं--भावार्थ यदि
छिछम्मो दाराणाम् ॥ १ ॥४॥ मुक्त जीव को मुखके अर्थ संकल्पी श
अर्थ-प्रसुप्त, तनु, विच्छिन्न और ७. रीर धारण करना पहता है और अ.
|दार रूप अगले सर्व क्लेशों का कारण गह र घममा होता है तो उम में अ-(संत्र) अविद्या ही है। वश्य राग है परंतु राग को योग द. अभिनिवेश का लक्षण योगशाख में श्रम में क्लेश वर्णन किया है.
| इस प्रकार हैविद्यास्मितारागढ़ षाभिनिवेशाः | स्वरमवादी घिदषोपि तथा सदोभिपचक्लेशाः ॥ २॥३
| निवेशः ॥ १॥ अर्थ विद्या-अस्मिता-राग-द्वेष और अर्थ जो भूख तथा पपिरतों को एक अभिनिवेग पर पांच प्रकार के क्लेश | समान प्रवेश हो उसे अभिनिवेश कह
ते हैं योगशास्त्र के भाष्यकारों ने इस हम हेतु दयानन्द जी के कथनान-का दृष्टान्त यह लिखा कि से इस सार दयानन्द जी की मुक्त जीवों पर बात का क्लेश मब को होता है कि ऐसी दपा होती है कि उन को बह हम को मरना है म श्री प्रकार के
लेशित बनाना चाहते है- कनेशित क्लेश अभिनिवेश कहाते हैं स्वामी जी कोवल राम ही के कारगा नहीं बरगाने मक्ति से सौटकर संमार में फिर अविद्या के कारण भी पोंकि जनता 'लौटने का भय दिखाकर बेचारे मुक्त
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