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यायमसलीला ।
परन्त प्यारे आर्य भाइयो ! माप घ- ब्रह्ममें स्वच्छन्द घूमता, शुद्ध मान से बराइये नहीं स्वयम् स्वामी दयानन्दने सब सृष्टि को देखता, अन्य मुक्तों के यह बात मानली है कि मुक्त जीव साथ मिलता, सृष्टि विद्याको क्रमसे ईश्वर के तुल्य होता है-देखो वह इस | देखता हुआ सब लोक लोकान्तरों में प्रप्रकार लिखते हैं
र्थात् जितने ये लोक दीखते हैं और ___ सत्यार्थप्रकाश पृष्ठ १८८ नहीं दीखते उन सब में घमता है। __ "मय दोष दुःख छुटकर परमेश्वरके वह सब पदार्थों को जो कि उसके ज्ञान | गण कर्म स्वभावके सदृश जीवात्माके के भागे हैं देखता है जितना ज्ञान | गण कर्म स्वभाव पवित्र हो जाते हैं। अधिक होता है उसको उतना ही प्रा ___ स्वामी जी ने सत्यार्थ प्रकाश में नन्द अधिक होता है मुक्ति में जीवाकई स्थान पर यह भी लिखा है कि मा निर्मल होने से पूर्णज्ञानी होकर मुक्त जीव ब्रह्म में रहता है परन्तु ब्रह्मा उसको मय मन्निहित पदार्थों का भान | में रहने का अर्थ सिवाय इमझे और यथावत् होता है। . कछ भी नहीं हो सकता है कि वह प्र. प्यारे आर्य भायो ! स्वामी दया।
ह्म के मद्राश हो जाता है क्योंकि वो नन्द जी का नपर्युक्त लेख पढ़नेमे स्वा. सर्व व्यापार मानने से मुक्त अमुकत मी जी का यह मत तो स्पष्ट विदित सब ही जीवांका ब्रह्म में निवास मिट हो गया कि मर्व ब्रह्मांड में कोई स्थल | होता है फिर मुक्त जीयों में कोई बा सक्षम अस्तु ऐसी नहीं है जिमका विशिष्टता वाकी नहीं रहती । पारे ज्ञान मक्त जीव को न हो मक्ता हो आर्य भायो ! स्वामीजीने माजीव घरग मर्वका ज्ञान तमको होता है और को प्रत्यक्ष सो वर्णन कर दिया परन्त वह पूर्ण ज्ञानी है । और ज्ञान ही उम उन असमाता की कोई मीमा भी का प्रानन्द है। स्वामीजी कोई भीमा यांधी ? यदि आप इस पर विचार जीवके ज्ञानकी नहीं बांध सके कि प्रकरेंगे तो नाप को मारनम हो जादंगा मक वस्तुका वा उसके स्वभावका जान कि न तो स्त्र मीत्री कोई मीमा मक्त | होता है. और अमुक का नहीं, वरण जीवके ज्ञान की बांध मके और न बंध वह स्पष्ट लिखते हैं कि उसको सर्व सकती है। देखिये स्वयं स्वामीजी इम जान होता है और पूर्गाज्ञान होता प्रकार लिखते हैं:
है और इसके विरुष्टु जिया भी फेमे मत्यार्यप्रकाश पठ-५०
जा गता है ? क्योंकि जब मन "मेले कामाजिक मुन्ध गरीर के आ-जीव के प्रानन्द का प्राधार उनका धारमे भोगता है ये रे परमेरके आसान ही है और जितना २ जीव धार मुक्ति के मानन्दको जीवात्मा भी- निर्मल होता जाता है और उसका गता है। वह मनाशी प्रान्त व्यापक ज्ञान पढ़ता जाता है उतना पानन्द