Book Title: Aryamatlila
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Tattva Prakashini Sabha

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Page 148
________________ भार्यमतलीला ॥ काम करदेवे-वा खुशामदसे बहकायेमें | स्तुति प्रार्थना क्यों करना , इसके भाजावे-वा जो उपकी स्तुति प्रादि- उत्तरमें स्वामीजी लिखते हैं। उनके न करे उससे रुष्ट होकर उसका काम करनेका फल अन्य ही है, " स्तुतिसे बिगाइ देवे । परन्तु ईश्वर तो बिस्कल ईश्वर में प्रीति उसके गुख कर्म स्वभाव निष्पक्ष रहता है उस पर निन्दा वा से अपने गुण कर्म स्वभावका सुधारना, स्तुतिका कुछ भी असर नहीं होता है प्रार्थनासे निरभिमानता उत्साह और बरस पर्व न्याय रुप होकर जीव के महायका मिलना उपासना से परब्रह्म भले बुरे कर्माका बुरा भला फल बरा- से मेल और उसका साक्षात्कार होना, वर देता रहता है | माशय स्वामी दयानन्दजीके खेखका महीको पष्टि में स्वामीनी पाठ १६ यह है कि ईघर मप्रसे उत्तम गोंका पर इसके भाग लिखते हैं: धारी है इस कारण यदि ईश्वरके गु. "स प्रकार जो परमेश्वरके भरोसे खोका चिन्तयन और उसके उत्तम गपालसी होकर बैठे रहते महामर्स खोकी स्तुति कीनावेगी तो स्तुति - हैं क्योंकि जो परमेश्वरको परुषार्थ करने वाले जीवके भी उत्तम गुणही रने की मात्रा है उसको जो कोई तोड़े जावेंगे क्योंकि जीवनमी संगति करता वा वा मुख कभी न पावेगा--" । है, जैसी बाने देखता है, जिन बातोंने सीबी पाटी में स्वामीजी पाट १७/प्रेम करता है, जिन बातोंको चर्चा वा पर लिखते : चितवम करता है और जैसी शिक्षा "जो-कोई गह मीठा है ऐसा काह पाता है वैसे ही उमजीवके नुख, कर्म, तासमको गड प्राप्त वा उसको स्वाद | |स्वभाव होजाते हैं। जो मनुष्य पद | मास कभी नहीं होता और जो यब | माशोंके पास बैठेगा था बदमाशोंकी परता उसको शीघ्र वा बिलम्बसे बातें सुनेगा वा बदमाशीको बातोंमें गह मिल ही जाता है, प्रेम लगावेगा या बदमाशोंकी प्रशंसा अभिप्राय इस का यह है कि ईश्वर | करेगा उसके चित्तमें बदमाशीका अंश | की स्तुति करने और ईश्वर के उत्तम अवश्य समाजावेगा और जो कोई - मुखोंकी प्रशंसा करनेसे कुछ नहीं होता मस्मिाओंकी संगति करेगा, उनसे प्रेम है बरस जीवको उचित है कि परुषार्थ रक्खेगा, उनकी प्रशंसा करेगा तो धर्म परके चरके समान अपने गल, कर्म का अंश उसके ,हृदयमें अवश्य पावेगा। और खनाव उत्तम बनावे और पुण्य यह ही कारण है कि जुवारी के पास सपार्जन करे जिस से उसके मनारय बैठने वा रविडयों के मोबजे तक जाना सिद्ध हो वा अश्लील पुस्तकोंका पढ़ना और पिर सत्यार्थप्रकाशके पृष्ठ १८३ पर अश्लील मूर्तियों तकका देखमा बुरा खामीजी यह प्रम करते हैं तो फिर समझा जाता है।

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