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मार्यमसम्नीला ।
स्प है और रागद्वेष रहित होकर नि. | रहा है और यह जरासा साहम भी तुम मेग्न होजाना ही इमका उत्तम गुगा है। मे नहीं होसका कि अफीम स्थाना कोड़ जिमके वास्ते गोवको सब प्रकार के देव, इस प्रकार बहुत कुछ श्रम करके साथन करना चाहिये और बड़ी मार्ग | अफीम खाने का अभ्यास छोड़ता है। धर्म कहलाता है जो जीवको इन स- प्यारे भाइयो ! बिस्कुन ऐमी ही द पाधियों और दुःखसे रहित कर देवेशा संमारी जीव की है- एक दम रागपरन्तु चिरकाम्नका जमा हुमा मैल घ. द्वेषको छोड़ अपनी भास्मामें भात्मत्य हुन मुश्किल से दूर ठुमा करता है। होजाना और स्वच्छ निर्मल होकर जन्म जन्मान्तर में बराबर रागढ ष में जान स्वरूप परमानन्द भोगना जीवके फंसे रहने के कारन यह मव उपाधि एक वास्ते दामाध्य है इस कारण वह प. प्रकार का संमारी जीव का स्वभावमा हले राग, द्वेष रूप को कम करता है होगपा है और इनसे विरक्त होना अर्थात् यद्यपि राग द्वेष कार्य करता है सको बुरा लगता है । संसारी जीबकी | परन्त प्रन्याय और अधर्मके कामोंको दशा बिल्कुन ऐसे ही है जैसे अफीमी त्यागता है। की हो जाती है जिनको चिरकाल तक इस विषय में स्वामी दयानन्द जीने | अफीम खाते २ अफीम खालेमा अभ्याम सत्यार्थ प्रकाश के पृष्ठ १८७ पर इस प्र-1 होगया हो पद्यपि वह जानता हो कि कार लिखा है:-- अफीम खाने से मुझ को बहुत नुकमान | जो उपामनाका प्रारम्भ करना चाहोता है शरीर कृश होगया है, इन्द्रि- हे उनके लिये यह ही प्रारम्भ है कि पां शिथिल होगई हैं, पुरुषार्थ जाता। वह किमी से धेर न रक्य, मवदा सब रहा है और अनेक रोग ट्याप गये हैं। से प्रीति करे, सत्य बोले, मिथ्या कमी | परन्तु तो भी अफीम का होना उन्म | न बोने चोरी न करे सत्य गवहार। के वास्ते करमाध्य ही होता है वह मरे, जितेन्द्रिय हो, लंपट न हो, निप्रथम कुछ कम खानी शुरू करता है | भिमानी को अभिमान कभी न करे और अफीम खाना छोडसे का साहस यह पांच प्रकार के यम मिलके उषाऔर तत्माह अपने में पैदा हो- सना योग का प्रथम अंग , नेके वास्ते एमे पुरुषांमे मिनना है जि- हमके प्रागे स्वामी दयानन्द जी दून्होंने अफीम खानी छोड़ दी हो उन मरा अंग इस प्रकार लिखते हैं अपांत में पूछता है कि उन्होंने किम २ प्रकार अब भ म यमाक साधनका अभ्यास हो अफीम छोड़नेका अभ्याम किया. मनमें जाव तत्र इस प्रकार अगाडी बढ़े। उनकी प्रशंमा करता है जिन्होंने अ रागद्वप छोड़ भीतर और जनादि फीम छोड़ी और अपनी निन्दा करता से बाहर पवित्र र धर्मन पुरुषार्य कहै कि तू इम अफीमके हो बागमें हो रने मे लाममें न प्रमानना मार हानिमें