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मार्यमतलीला ॥
न अप्रसन्नता करे प्रमत्र होकर मालस्य | परन्तु प्यारे भाइयो । यदि आप धिछोड़ सदा पुरुषार्थ किया करे, सदा दुः-चार करेंगे तो आपको मालूम होगा समुखोंका सहन और धर्म ही का अ.कि जिस प्रकार स्वामीजी परमेश्वरकर नुष्ठान करे अधर्मका नहीं सर्वदा सत्य | स्वरूप वर्णन करते हैं उस प्रकारके - शाखोंकोपढ़े पहावे सत्पुरुषोंका संगकरे..रमेश्वरकी प्रार्थना,स्तुति और उपासना
तात्पर्य इस सब लेखका यह है कि वह कार्य सिद्ध नहीं होसका है जो भाप रामद्वेषको त्यागकर जीवके शुद्ध मिर्म-सिद्ध करना चाहते हैं क्योंकि जीवको ल होने के जो जो उपाय हैं वह ही माध्य है रागद्वेषका छूटना संसारका धर्म कहलाते हैं और संमारके सर्व प्र- ममत्व दूर होना संसारके बसेडेमें से कारके मोहको परित्याग कर अपनी अलग निकल कर एक चित्त शांतिस्वमात्मामें स्थित होमाही परम साधन | रूप होना और परमेश्वरके गुण स्वोमी है-यह संसारी जीव धर्म मार्गमें लग दयानन्दजो बतात ६ पस
दयानन्द जी बताते हैं इसके विपपर जितना २ इससे होमक्का है राग रीति वह कहते हैं कि ईश्वर जगत् द्वेषको कम करता जाता है अर्थात् धर्म का कत्ता है-कभी सष्टि बनाता है कसेवन करता है और अपनेमें रागढ़ष |
| भी प्रलय करता है, संमार में जो कुछ के अधिक छोहने और संमारके मो- होरहा है वह उस ही का किया हो हजाल से निकलने की अधिक उत्तेजना रहा है- समय समय पर संसार में जो कुछ
और अधिक माहस होनेके वामधी अनटन पलटन होती है वह मब बह शाखों को पढ़ता है, धर्मात्मानों की कररहा है.-सर्व संमारी जीवोंको जो शिक्षा और उपदेश मुनता है मां कुछ मुख दुः' पहुंच रहा है, जो मरना स्मानोंकी संगति करता है उन जीयों। जोना रोग नीरोग, धन, निर्धन प्रा. के जीवन चरित्रों को पढ़ना और सु-दिक व्यवस्था समय समय पर जीवों की नता है जिन्होंने रागढंघको त्यागकर पमट रही है वह ईश्वर ही उनके कमुक्ति प्राप्त कर ली है-मुक्ति जीवाम मानपा प्रगटा रहा है-तप प्यारे भा. प्रेम रखता है और उनका ध्यान क-पया ! यिचार कीजिये कि यदि ई. रता है।
श्वर अर्थात् उसके गुणों का विचार ___ संसारके मोह जामसे लटनेको स किया जायेगा उम के गुगों की स्तुति ही प्रकारको उत्तेजना और साहम येदा की जागी वा उस के गुणों मे ध्यान करने होके वास्ते स्वामी दयानन्दजीबांधा जावेगा तो राग पैदा होगा या ने परमेशा के काम्न गुग की भक्ति भ- वैराग्य, संमार के यखेड़ों में प्रीति होर्थात् प्रावतात और उपासनाको गी वा अप्रीति प्यारे मार्य भाइयो। कार्य का श्रावश्यक बताया है। ऐसे ईश्वर की भक्ति से तो संसार ही
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